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१७ वर्ष
भाख्यं भाषणमां भगवान, धर्म न बीजो दया समान; अभयदान साथ संतोष, द्यो प्राणीने, दळवः दोष ॥ २ ॥ सत्य शीळ ने सघलां दान, दया होईने रह्यां प्रमाण; क्या नहीं तो ए नहीं एक, विना सूर्य किरण नहि देख ॥ ३ ॥ पुष्पपांखडी ज्यां दूभाय, जिनवरनी ल नहि आज्ञाय; सर्व जीवनुं इच्छो सुख, महावीरनं शिक्षा मुख्य ॥ ४ ॥ सर्व दर्शने ए उपवेश, ए एकते, नहीं विशेष; सर्व प्रकारे जिननो बोध, वया दय निर्मळ अविरोध ! ॥ ५ ॥ ए भवतारक सुंदर राह, घरिने तरये करी उत्साह; धर्म सकळनुं ए शुभ मूळ, ए वण धर्म सदा प्रतिकूळ ॥ ६ तत्त्वरूपथी ए ओळखे, ते जन पहोंचे शाश्वत सुखे; शांतिनाथ भगवान प्रसिद्ध, रजचंद्र करुणाए सिद्ध ॥ ७ ॥
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शिक्षापाठ ३ : के चमत्कार
'तुम्हें बहुतसी सामान्य विचित्रताएं बताये / देता हूँ, इनपर विचार करोगे तो तुम्हें परभवकी श्रद्धा दृढ होगी ।
एक जीव सुन्दर पलगपर पुष्पशय्यामे शय करता है, और एकको फटी-पुरानी गुदड़ी भी नसीब नही होती । एक भाँति-भाँति के भोजनोंसे तृप्त हता है और एक दाने-दानेको तरसता है । एक अगणित लक्ष्मीका उपभोग करता है और एक फूटी कौर के लिये दर-दर भटकता है । एक मधुर वचनोंसे मनुष्यका मन हरता है और एक मूक-सा होकर रहता है। एक सुन्दर वस्त्रालकारसे विभूषित होकर फिरता है और एकको कड़े जाड़ेमे चीथडा भी ओढनेको नहीं मिलता । एक रोगी है और एक प्रबल है । एक बुद्धिशाली है और एक जडभरत है । एक मनोहर नयवाला है और एक अधा है । एक लूला है और एक लगडा है । एक कीर्तिमान् है और एक अपयश भोता है। एक लाखो अनुचरोपर हुक्म चलाता है और एक लाखोके ताने सहन करता है । एकको देकर आनन्द होता है और एकको देखकर वमन होता है । एककी भगवान प्रवचन में कहा है कि दया समान दूसरा धर्म नही है । दोषोका नाश करनेके लिये प्राणियोको अभयदानके साथ दो ॥ २ ॥
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शील और सभी दान दयाके होनेपर ही प्रमाणित हैं । जैसे सूर्यके विना किरणें नही हैं, वैसे ही दयाके पर सत्य, शील, दान आदि एक भी गुग नही है | ३ ||
जिससे पुष्पकी एक पखडीको भी दुख होता है, वह करनेकी जिनवरकी आज्ञा ही नही है । सब जीवोका सुख चाहो यही महावीरकी मुख्य शिक्षा है ॥ ४ ॥
सब दर्शनोमें दयाका उपदेश है । यह एकात है, विशेष नहीं । सर्व प्रकारसे जिन भगवानका यही बोघ है कि दया एव विरोधरहित निर्मल दया परम धर्म है ॥ ५ ॥
यह ससारसे पार करनेवाला सुदर मार्ग है, इसे उत्साहसे अपनाओ और ससार-सागरको तर जाओ । यह सकल धर्मका शुभ मूल है । इसके बिना धर्म सदा अधर्म है ॥ ६ ॥
जो मनुष्य इसे तत्त्वरूपसे जान-समझ लेते हैं, वे इसके आचरणसे शाश्वत सुखको प्राप्त करते है । राजचद्र कहते हैं कि शातिनाथ भगवान करुणासे सिद्ध हुए है यह बात प्रसिद्ध है ॥ ७ ॥