________________ ( 17 ) कि वे रत्नाकरावतारिका का चतुर्थ परिच्छेद; स्थाद्वादमंजरी के तेईसवें श्लोक की व्याख्या और सप्तभंगीतरंगिणी नामा ग्रंय देखें। स्याद्वाद का स्वरूप / प्रत्यक्ष, परोक्ष और आगम प्रमाण से जो पदार्थ सिद्ध हो चुका है, उस में परस्पर विरुद्ध धर्मों का भी सापेक्ष रीत्या समावेश है / ऐसा बोध कराने वाले सिद्धान्त को 'स्याद्वाद / कहते हैं। जैसे-एक ही पुरुष में अस्तित्व, नास्तित्व, पुत्रत्व, पितृत्व, स्वामित्व, सेवकत्व, भागिनेयत्व, मातुलत्व, जीवत्व, मनुष्यत्व, ब्राह्मणत्व, वाच्यत्व और प्रमेयत्व आदि अनेक धर्मों का समावेश होता है। यह बात स्वानुभव सिद्ध है / तो भी दुःख की बात है कि लोग आग्रह कश पदार्थ के वास्तविक स्वरूप का इन्कार करने में कुछ भी आगा पीछा नहीं करते हैं। ___यहाँ कोई वादी शंका करे कि तुम्हारी मानी हुई स्याद्वाद प्रक्रिया में संकर, व्यतिकर, और विरोध आदि दोष स्पष्टतया दिखाई देते हैं। ___ इस के उत्तर में हम वादी से पूछेगे कि-पंचावयव वाक्य में पहिले अवयव और प्रतिज्ञा होती है / उस के बाद हमेशा