________________ (15) कई बार तो उस को-अव्युत्पन्न-मति वाले को दस अवयवों की भी आवश्यकता हो जाती है। और व्युत्पन्नमति तो दो अवयों से भी अनुमान कर सकता है। ५-कहने योग्य पदार्थ को जो यथार्थ रीत्या जानते हैं. और जानते हैं उसी तरह कहते हैं, वे ' आप्त पुरुष ' कहलाते हैं। ये आप्त दो प्रकार के होते हैं-(१) लौकिक आप्त और ( 2 ) अलौकिक आप्त / ( 1 ) पितादि लौकिक आप्त हैं। ( 2 ) तीर्थकरादि अलौकिक-लोकोत्तर आप्त हैं। इन दोनों में से लोकोत्तर आप्त पुरुषों के वचनों से उद्भवित नो अर्थ-ज्ञान है, उस को 'आगम' कहते हैं। उपचार से आप्त पुरुषों के वचनों को भी हम आगम कह सकते हैं। 'आगम' का कार्य है-सप्तभंगी के वास्तविक स्वरूप को समझाना / सप्तमंगी के द्वारा स्याद्वाद अथवा अनेकान्तबाद का रहस्य समझ में आता है / इस लिए यहाँ हम पहिले सप्तभंगी का विचार करेंगे / प्रत्येक पदार्थ पर सप्तमंगी घटित हो सकता है। सप्तभंगी का स्वरुप / इस सप्तभंगी का पूर्वोक्त 'नय ' और 'प्रमाण के हा