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णाममें उससे होनेवाले लाभालाभकी ओर दृष्टि नहीं डाल सकता है । अपितु सुख शुभ कर्मोका उदय है और एकत्र की हुई सम्प. निका व्यय है । जब कि वास्तविकतया तो इसमें भी आनन्दकी कमी ही है-इस बातका पत्ता समताके रहस्यको पूर्ण रीतिसे समझ लेनेपर चलता है।
मोक्ष एक ऐसा सुख है कि जिस सुखके पश्चात् दुःख कभी भी आही नहीं सकता है, अपितु वहाँ पोद्गलिक नही परन्तु
___ आत्मिक आनन्द निरन्तर निवास करता है। उस सच्चे सुखकी बानकी. स्थितिमें न तो यहां के स्वर्णकी, बेडियों तुल्य
कल्पित सुख ही हैं, न लोहेकी गदाके सदृश दुःख ही हैं। यह मोक्ष हमारा परम साध्यबिन्दु होना चाहिये, तथा इसकी प्राप्तिके लिये चाहे जितना भी प्रयास क्यों न करना पडे अवश्य करना चाहिये । इसके कारण बहुत विचारने योग्य हैं । हमको शुभ कार्य करने चाहिये । प्रश्न होगा दान, शान, क्रिया, दम आदि करनेका क्या हेतु है ? उत्तर मिलेगा कि जनहित । फिर प्रश्न होगा कि जनहित करमेका क्या कारण है ? इस प्रकार प्रश्नोत्तर होते होते अन्तमें इन सबका हेतु मोक्षप्राप्तिही होगा ! सबका अन्तिम साध्य यह ही होता हैं कि आत्मा सर्व व्यवहारिक उपाधियोंसे मुक्त होकर स्थिरताको प्राप्त करे अतः सब इसीके लिये प्रयास करते हैं और करना भी चाहिये । तात्कालिक सुखमें आनन्दकी कल्पना करनेवाला प्राणी न मोक्षसुखका अनुभव समझ सकता है, न कल्पना करता हैं और न उसकी प्राप्तिके लिये लालायित ही हो सकता है । इसलिये वैराग्यग्रन्थ उस सुखके स्वरूपको बतलानेका प्रयास करते हैं । वे सर्व प्रथम समताका स्वरूप बतला कर जीवको समजाते हैं कि स्वर्गसुख और मोक्षसुख तो बहुत दूर रहे हैं, परन्तु तुझे यदि उनकी बानगी ( Sample ) चखनी हो तो समतासुखमें चखले । यह वैराग्यका विषय वस्तुस्वरूप और प्राणियोंका अरस्परस सम्बन्ध उसीप्रकार इस जीवके आचार, व्यवहार, वर्त्तन आदि बातें अत्यन्त गूढ़ प्राशयसे और स्पष्टतया बतलाते हैं। उस विषयके अन्तरगत कोन कौनसे मुख्य विषयोंका समावेश होता है. उनको पढ़िये ।।
पुत्र, प्रिया, लक्ष्मी और शरीरको प्रेम क्या वस्तु है और