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नियमसार-प्राभृतम् अथ क आगमः के च तत्त्वार्था येषां बद्धानमपि सम्यक्त्वं ? इत्यायाङ्कायामाहुःतस्स मुहग्गदवयणं, पुठवावरदोसविरहियं सुद्धं । आगममिदि परिकहियं, तेण दु कहिया हवन्ति तच्चस्था ॥८॥
तस्स मुहग्गदवयणं-तस्य पूर्वोक्तगुणविशिष्टस्य आप्तस्य परमात्मनः मुखोद्गतवचनं मुखात उद्गतं च तद्वचनं । कथंभूतं तत् ? 'पुव्यावरदोस विरहियंपर्वापरदोषविरहितं पूर्वे च अपरं च पूर्वापराः, ते च बोषाश्च परस्परविरोधाश्च तैः विरहितं शून्यम् । पुनश्च किविशिष्टं ? सुद्ध-शुद्धं । किं नामधेयं तत् ? आगममिदि परिकहियं-'आगमम इति परिकथितम् । फैः परिकथितम् ? गणधरादिमहामुनीन्द्रः । ज्ञातमागमलक्षणम् । अथ के तत्त्वार्थाः? तेण द कहिया तच्चत्था हन्ति-तेन तु कथिताः तत्त्वार्याः अस्ति, तेन सामेन से गित गायिका एर तत्त्वार्था नान्ये इति ।
इतो विस्तरः-पञ्चमहाकल्याणचतुस्त्रिशदतिशपाष्टमहाप्रातिहार्यसमन्वितदेवाधिदेवपरमतीर्थंकरमुखकमलोद्भतशब्दपरमब्रह्मा स एव परमागमः । कस्मात् ?
अब आगम क्या है ? और तत्त्वार्थ कौन-कौन हैं ? जिनका श्रद्धान भी सम्यक्त्व है ? ऐसी आशंका होने पर आचार्यदेव कहते हैं---
___ अन्वयार्थ (तस्स मुहग्गदवयण) उन आप्त के मुख से निकले हुए वचन (पुवावरदोसविरहियं सुद्ध) जो पूर्वापर दोष से रहित और शुद्ध है (आगममिदि परिहरियं) वही 'आगम' ऐसा कहा गया है। (तेण दु कहिया तच्चत्था हवंति) उस आगम में कहे गये ही तत्त्वार्थ हैं ।।८।।
उन पूर्व कथित गुणों से सहित आप्त परमात्मा के मुख से निकला हुआ वचन, परस्पर विरोध रूप पूर्वापरविरोध आदि दोषों से रहित और शुद्ध है । गणधर आदि महामुनियों ने उसे ही 'आगम' कहा है। और उस आगम में जो भी कहे गए हैं वे हो तत्त्वार्थ हैं उससे भिन्न नहीं।
__ इसका स्पष्टीकरण
___ पांच महाकल्याण, चौतीस अतिशय और आठ महाप्रातिहार्यों से सहित देवाधिदेव परम तीर्थकर आप्त हैं। उनके मुखकमल से प्रगट हुआ शब्द ब्रह्म ही परम ब्रह्म है-वही परमागम है। क्यों ? क्योंकि उसमें पहले और पश्चात् में परस्पर में विरोध नहीं है, इसीलिए वही आगम है । १. पुञ्चापर इति पाठः फुन्दकुम्दभारस्याम् ।