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नियमसार-भाभृतम् पुनः कस्य स्थायि मामायिक भवेदिति कथयन्ति सूरिवर्याः--
जो समो सव्वभूदेसु, थावरेसु तसेसु वा।
तस्स सामाइगं ठाई, इदि केवलिसासणे ॥१२६।।
जो समो-यो निर्गन्यतपोधनः समभावपरिणतः । केषु ? सव्वभूदेसु-सर्वेषु एकेन्द्रियविकलेन्द्रियपंचेन्द्रियषु । पुनः कथंभूतेषु ? थावरेसु तसेसु बा-स्यावरकायिकेष असेष वा पीडाकरविधातनादिभावरहितः समभावयुक्तः, तस्स सामाइगं ठाई-सस्य वीतरागमनेः सामायिकं स्थायि कथ्यते । क्ध ? इदि केवलिसासणेइत्थं केवलिनां शासने, समये, सम्प्रदाये वा।।
तद्यथा-सर्वे संसारिप्राणिनः त्रसस्थावरभेदाद् द्विविधाः, प्राणभूतजीवसत्त्वमेवाच्चतुर्धा वा भिद्यन्ते। उक्तं च
वित्रिचतुरिन्नियाः प्राणाः, भूतास्ते तरवः स्मृताः।
जीवाः पंचेन्द्रिया शेयाः, शेषाः सत्त्वाः प्रकोतिताः ।। पुनः किनके सामायिक होती है ? मूरिवर्य इसे कहते हैं--
अन्वयार्थ-(जो सबभूदेसु थावरेसु वा तसेसु समो) जो मुनि सर्वप्राणियों में स्थावर और बसों में समभाव रखते हैं, (तस्स ठाई सामाइगं) उनके स्थायी सामायिक होती है। (इदि केवलिसासणे) ऐसा केवली भगवान के शासन में कहा है।
टोका-जो निर्ग्रन्य तपोधन समभाव से परिणत हुये एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, पंचेंद्रिय अथवा पृथ्वीकायिक आदि स्थावरकायिक और असकायिक जीवों को पीड़ा करने वाले, विघात आदि करने वाले भावों से रहित होते हुए समताभाव से युक्त होते हैं, उन वीतरागमुनि के सामायिक स्थायी होता है, ऐसा केवली भगवान् के शासन-आगम में अथवा संप्रदाय में कहा गया है। . उसे ही कहते हैं-सभी संसारी प्राणी स-स्थावर के भेद से दो प्रकार के हैं । अथवा प्राण, भूत, जीव और सत्त्व के भेद से चार प्रकार के भी हो जाते हैं। । कहा भी है--
दो, तीन, चार इन्द्रिय वाले जीव प्राण कहलाते हैं, बनस्पतिकायिक जीव भूत कहलाते हैं, पंचेंद्रिय जीव जीव नाम से जाने जाते हैं और शेष बचे हुये जीव १. सामायिकभाष्य ।
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