Book Title: Niyamsara Prabhrut
Author(s): Kundkundacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 606
________________ शुद्धिपत्र भामुख शुक क्षुत्तृष्णादिपरीषहेषु च अ० २७ इस क्रम से पृष्ठ ३७८ अथवा क्षुत्तृष्णादिपरीषहेषु म. २७, २८ इस कम में सुख का ३८२ सुख को करने योगमुद्रया धीरा करते योगमुद्रया जिनमुद्रया धीराः ४८ अवगणय्य षाविहीणं येषु मन्ये ३८४ ३८२ ३९४ ३९७ ४०१ ४०३ ४१७ ४१८ अवगण्य घासुविहीतं मेषु जंघाप्रक्षा जप्रक्षा बकुश दाचा पर्यायाणो ४१९ ४२१ अर्थवा पुस्तमवसतिका ४२४ ४२५ ४३२ दैगम्बरी संजदासंथव करने वाले के वीतराग चरित्र को परिपर्ण कर लेते हैं। बकुश वाचा पर्यायाणां अथवा पुस्तकवसतिका बाते हैं। दैगम्बरों संजदासंजद करते हुये के वीतराग चारित्र में परिणत होते हुये साधु अपन घमण पद के योग्य यारित्र को परिपूर्ण कर लेते हैं। देवाः कहलाता है। कहा है जैन वचन में ४४० ४४१ देवा कहलाती है। कहा गया है जिन वचन में ४४३ ४४३ ४४३ ४४५ विकल्पादाप प्रवचनसार गाथा २६ विकल्पादपि प्रवचनसार गाथा २६० आवश्यक मूलगुण जानविधि आवश्यक छह मुलगुण ज्ञाननिधि ४४७ ४४८ ४५३

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