Book Title: Niyamsara Prabhrut
Author(s): Kundkundacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 608
________________ शद्धिपत्र अब जाता पणं अट्ठरुहाणि जगण मदृरुवाणि ५१५ ५१७ ५१७ धम्मसुक्कझाणे जण किञ्च, स्यावादिनां मसे पुनरागमनरहित स्वाचित मित्यादयोऽन्तानन्ता निजहृदय यतिप्रतिक्रमण आधेय ५२१ ५२६ धम्मसुक्ककाणे जगणं स्याद्रादिना मते पुनरागमरहित स्वाभित मित्यादयोऽनन्तनन्ता निजहदत प्रतिप्रतिक्रमण आधे मुझे द्वार सोपेक्षत्वात प्रस्तुत परिवर्तत फुदेवलिंगी ध्यक्षीत्युसषट् विद्यानंद्याचायण पन्यों से आर्यमक्ष कयायपाहु विवक्षितोऽशरूपो अस्यकावयवर्भूत समाजमाधवाणि ५३३ द्वारा सापेक्षत्वात् प्रत्युत परिवर्तन कुदेवकुलिंगी श्यशीत्युत्तरषद विद्यामंधाधाचार्येण अन्यों में आर्य मंक्षु कसायपाहड़ विधक्षितोऽशरूपो अस्यकाषयबभूत समाउगापदाणि ५३८ ५३८ ५३८ ५४० ५४२ का को भाजतक आजकल प्रतिभा प्रामचित्त योग असमाए स्वलन उत्तम सद्वहामि प्रतिमा प्रायश्चित्त जोमां असाझाए स्खलन उत्तम सं सहामि ५४७ ५५१

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