Book Title: Niyamsara Prabhrut
Author(s): Kundkundacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 605
________________ ५७४ नियमसार-प्राभृत पृष्ठ रहना २७४ x अनाद्ध करना थाहा मुनैः मोतंग वत चतुष्टव्य स्थिरस्व मुनेः मोत्तण व्रत चतुष्टय स्थिरत्वं २८० २८१ २८५ २८७ ३११ ३१२ ३१३ सं परिणाम कस्मिचिद् शुक्लाव्याने मुंग भूरवा प्रागनिरूपितः प्रत्यकर्म और नोकर्म केषां कृते कथितं शुद्धयर्थ होकर ही रलत्रय हुए मी अप्पसरूवालंबणं कुंबुधिदेवा अपराधी विषाकरणं सर्वसहभावः स्वं परिणाम कस्मिरिषद् शुक्लध्याने वा मुंडो भूस्खा प्रागनिरूपित द्रष्यकर्म, भावकम और नोकर्म केषां कथित शुद्धयर्थ च होकर भी रलमम ३१७ ३१७ ३२१ ३२१ ३२१ हुए भी ३२४ ३२४ अप्पसस्वासंबण कुंदकुंददेवाः अपराषो द्वेषाकरणं सर्व सहभाव: ३३३ आयश्चित्त प्रायश्चित्तं हवेदि हृवदि ३३७ ३५० अनयोगी प्रोप्य ध्यासी सबको भारमा अनर्योगी प्राप्यं ध्यानी उन सबको आत्मा में निज सौर्षकर जिम ३७२ तीर्थकर

Loading...

Page Navigation
1 ... 603 604 605 606 607 608 609