Book Title: Niyamsara Prabhrut
Author(s): Kundkundacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 576
________________ नियमसार-प्राभृतम् सत्यमेतत्, यद्यपोमाः श्रमण्यः पंचमगुणस्थानिन्यस्तथापि ता एकादशमप्रतिमाधारिक्षल्लकैलकापेक्षयोत्कृष्टा उपचारमहाव्रतिकाः संयतिकाः कथ्यन्ते । मनिरिव सर्वान् मूलगुणान् समाचारांश्च पालयन्ति । एकादशांगश्रुतस्याध्ययनेऽपि तासामधिकारोऽस्ति । उक्तं च मूलाधारे एसो अज्जाणं पिअ सामाचारो जहाक्खियो पुध्वं । सम्वम्हि अहोरत्ते विभासिदव्यो जघा जोगं ॥१८॥ सुत्तं गणधरकहिदं तहेब पसेययुसिकथिवं च । सुवफेवलिणा कधिदं अभिण्णदसपुष्यफषिवं च ॥२७॥ तं पढियुमसमाये जो कप्पदि विरक्ष इथिवग्गस्स। एतो अपणो गंथो कप्पदि पढिचं असमाए ॥२७८॥ टीकायामपि—'तत्सूत्रं पठितुमस्वाध्याये न कल्प्यते न युज्यले विरतवर्गस्यसंयतसमू समाधान-आपका कहना ठीक है, यद्यपि ये आर्यिकायें पंचमगुणस्थान बाली हैं, फिर भी ये ग्यारहवें प्रतिमाधारी क्षुल्लक ऐलक की अपेक्षा उत्कृष्ट हैं, क्योंकि ये उपचार से महाव्रती संयतिका कहलाती हैं। मुनि के समान सर्व मूलगुणों को और समाचार क्रियाओं को पालन करती हैं । ग्यारह अंग तक श्रुत का अध्ययन करने का भी इनको अधिकार है । मूलाचार में कहा है पूर्व में जैसा सामाचार प्रतिपादित किया है, आयिकाओं को भी संपूर्ण कालरूप दिन और रात्रि में यथायोग्य-अपने अनुरूप, अर्थात् वृक्षमल, आतापन आदि योगों से रहित बही संपूर्ण सामाचार विधि आचरित करनी चाहिये । ___गणधरदेव द्वारा कथित, प्रत्येक बुद्धि ऋद्धिधारो द्वारा कथित, श्रुतकेवली द्वारा कथित और अभिन्न दशपूर्वी ऋषियों द्वारा कथित को सूत्र कहते हैं । अस्वाध्याय काल में मुनिवर्ग और आर्थिकाओं को इन सूत्र-ग्रंथों का पढ़ना ठोक नहीं है। इनसे भिन्न अन्य ग्रन्थ को अस्वाध्याय काल में पढ़ सकते हैं । टीका में श्रीवसुनंदी आचार्य ने इसे ही स्पष्ट किया है -विरतवर्ग-संयतसमूह को और स्त्री वर्ग अर्थात् आर्यिकाओं को अस्वाध्याय काल में-पूर्वोक्त कालशुद्धि आदि से रहित काल में इन १. मूलाधार, म० ४। २. मूलाचार, अ. ५।

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