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नियमार माभूत
इंद्रों की अपेक्षा बारह भेद है। विभपंतः
और १२६ जिसके निश्चय नयद्रव्य पश्यपि सायमादी
ऋल्पोषपान और कल्पातीत ये दो भेद हैं। विभ्यतः
और भोगभूमि १२६ जिसका निश्चयनय नयम पश्यति राययादो
5द्ध
श्रदधानः
कर्मोपाधि
कर्मोपाधि द्वौ एक
हो एवं पज्जायेहि
पञहि पर्यायाथक
पर्यायाथिक साहित्य
सहितत्व स्पर्शरसन
स्पर्शनरसन संहार
संसारको जो
का जो विभाव
विभागतत्किमर्थम्
तकिमर्थम् ? न्नादिनि
न्ननादिनि धातुमय मूर्ति
धातुमयमूति श्रवानः पर्याया वर्चाया
१०५ विशाप्य
विज्ञाय कलाणुषु
कालाणुषु संख्यात
संख्यात, असंख्यात ऽस्मि ऽस्ति
११३ प्यनात प्यनंत
११४ शत्य
शक्त्य
सार्थ अवितयं
अघितथं जीवस्स
जीवस्य के कारण
से कारण नोट----पृष्ठ नं० ९४ पर भावार्थ में एक लाइन छुट गई है वह ऐसी है
"यद्यपि स्कंध अपनी जाति में ही परिणमन कर रहा है फिर भी उसकी गुण पर्याय स्वभावरूप नहीं मानी है।
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साथ
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