Book Title: Niyamsara Prabhrut
Author(s): Kundkundacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 602
________________ अशुद्ध धारण विशति माविर्भूता क्षीण स्वभाव से निरस शुखो है । चतुनादि ताति विकारः पुद्दल पुषार्थी अट्ठागुणा निजमुद्रां जन्म सिद्धस्वभाव: सेनी अंतस्वरूप अपनी साथ भारो हण तत्त्वो कित्विद सस्थानां अनयोगार्थ निमित्त हैं । स्त्रितिकेषु लकल्पार्थ 言 बहरि सयता स्वरूपी भावों उपाधि शुद्ध धारणं विंशति आविभूता आ क्षीण स्वभाव के णिरय 5] शुद्धोऽ है। चतुरस्रादि A विकारा पुद्गल पुरुषार्थो अट्टगुणा जिनमुद्रां जन्य सिद्धस्वभावाः सैनी अंतःस्वरूप अपने साथ आरोहण तत्त्वों किल्विदं तत्वानां अनयोर्गाथ शुद्धिपत्र निर्मित है। इसका स्पष्टीकरण स्थितिकेषु लयर्थं है— बहिर संयता स्वरूप भावों को उपभि पृष्ठ १२६ १२८ १३० १३२ 23 १३६ १३८ १३८ १३८ १३८ १४० १४२ १४३ १४६ १४७ १४९ १५१ १५१ १५५ १५६ १५६ १५६ १५८ १६० १६१ १६२ १६६ १६७ १६७ {{s १७१ ג' १७५ १७६ १७७ ५७१ पंक्ति ७ ७ ९ १२ ९ ६ २३ ४ ९ १ १९ २ २५ ८ २३ १० २५ २२ १५ २८ २८ १४ ४ १ १ १८ १ १८ २ ९ १३ २८ १६

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