Book Title: Niyamsara Prabhrut
Author(s): Kundkundacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 594
________________ ५६३ नियमसार-भाभृतम् इमा टीकां विलोक्यात्र, तुष्यंत्यार्षानुरागिणः । गुरूणां द्रोहिणः सत्यं द्विषन्त्येव स्वभावतः ॥२५॥ तयोर्मे रागद्वेषौ न, वैवाश्रिता हि किंच ते | ततोऽहं भावयामीत्थं, स्वभावोतर्कगोचरः ॥२६॥ यावत चतुविधः संघो वस्य॑ते चात्र भूतले । तावदियं कृतिः स्याद् भव्यानां सिद्धिकारिणी ॥२७॥ जंबद्वीपस्य निर्माणम, द्रुतगत्याऽभवद् यवा । जिनबिंबप्रतिष्ठायाः सन्नाहो वर्तते महान् ॥२८॥ भारतस्येन्दिरागांधी, प्रधानमंत्रिनामभाक् । साव्याब्दपूर्व यत् प्रावर्तत कराब्जतः ॥२९॥ जबूद्वीपाकृतेः रूपं ज्ञानज्योतिर्थवाऽधमत् । सर्वत्र भारत देशे उत्तरप्रांतमाश्रयत् ॥३०॥ टिकैतनगर सस्य मज्जन्मभुवि स्वागतम् | महोत्सवैश्चलन्नास्ते प्रसन्नाहं तवा त्विह ॥३१॥ मत्पाश्र्वे चोपविष्टेयं रत्नमत्यायिका प्रसूः । मार्गे शुक्ले द्वितीयायाम, प्रशस्तिः रचिता मया ॥३२॥ यहाँ इस टीका को देखकर आर्ष मार्ग के अनुरागी हर्ष को प्राप्त होंगे और गुरुओं के द्रोही लोग स्वभाव से ही द्वेष करेंगे। उन राग-द्वेष करने वालों के प्रति मेरा राग-द्वेष नहीं है, क्योंकि वे निश्चित ही कर्म के आश्रित हैं । इसलिये मैं यह भावना करती हूँ कि स्वभाव तर्क के अगोचर है । जब तक चतुर्विध संघ इस पृथ्वी तल पर रहेगा, तब तक भव्यों के लिये सिद्धि करने वाली यह कृति स्थित रहे। जिस समय जम्बूद्वीप का निर्माण कार्य द्रुतगति से चल रहा है और जम्बूद्वीप में जिनबिब प्रतिष्ठा की तैयारी बड़े रूप में हो रही है। भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने ढाई वर्ष पूर्व जिसको अपने करकमल से प्रवर्तित किया था, जम्बूद्वीप की आकृति (मॉडल) रूप ज्ञानज्योति अर्थात् "जम्बूद्वीप ज्ञानज्योति' जब सर्वत्र भारत देश में भ्रमण करते हुये उत्तर प्रांत में पहुंची, जब मेरी जन्मभूमि टिकैतनगर में उसका स्वागत महान् उत्सव के साथ चल रहा है, उस समय मैं यहाँ पर प्रसन्न हूँ। मेरे पास में मेरी जन्मदात्री माता रत्नमती आर्यिका बैठी

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