Book Title: Niyamsara Prabhrut
Author(s): Kundkundacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 586
________________ नियमसार-प्रामृतम् ५५५ धरैश्च कृतं परकृतम् । स्वकृतं चारणविद्याधराणामेव । तेषां च क्षेत्राणां विभाग:-कर्मभूमिः अकर्मभूमिः समुद्रो द्वीप ऊर्ध्वमस्तिर्यगिति । सर्वस्तोकाः ऊर्ध्वलोकसिद्धाः । अधोलोकसिद्धाः संख्येयगुणाः । सियरलोकसिद्धाः संख्येयगुणाः । सर्वस्तोकाः समुद्रसिद्धाः। द्वापसिद्धाः संख्येयगुणाः । एवं तावविशेषेण । विशेषेण च सर्वस्तोकाः लवणोदसिद्धाः । कालोदसिद्धाः संख्येयगुणाः। जम्बूढोपसिद्धाः संख्येयगुणाः। पातकोखंडसिद्धाः संख्येयगुणाः । पुष्करद्वोपार्थसिद्धा संख्येयगुणा इति"।' इत्यं अस्यमयलोकस्य सर्वस्थानेभ्यो जलेभ्यः स्थलेभ्यो नभोभ्यः सार्थद्वयद्वीपसमवेषु ऊर्ध्वाधोमध्यलोकेभ्यः सर्वक्षेत्रपर्वतग हानदीसरोवरवनोपवनेभ्यश्च यं सिद्धाः बभूवुः भवन्ति भविष्यन्ति, तेभ्योऽतीतानागतवर्तमानकालत्रयसर्वसिद्धेभ्यो मेऽनन्तशः नमोऽस्तु। एवं 'णियमं णियमस्स फलं' इत्यादिना ग्रन्थरचनोद्देश्यनिजलघुताप्रदर्शनस्वकृत भी चारण विद्याधरों का ही है। अर्थात् जिन किन्हीं मुनि को चारण ऋद्धि है, उसके निमित्त से वे नदी आदि कहों से सिद्ध माने गये हैं। उनके क्षेत्रों का विभाग कहते हैं-कमभूमि, भोगभूमि, समुद्र, द्वीप, ऊवलोक, अधोलोक और तिर्यग्लोक । ऊर्ध्वलोक से सिद्ध हुये सबसे कम है। अधोलोक से सिद्ध हुये उनसे संख्यात गुणे हैं। तिर्यग्लोक से सिद्ध हुये इनसे संख्यात गुणे हैं। सबसे कम समुद्र से सिद्ध हुये हैं । द्वीप से सिद्ध हुये उनसे संख्यात गुण हैं । यह सामान्य कथन है । विशेष रूप से लवण समुद्र से सिद्ध हुये सबसे कम हैं । कालोदधि से सिद्ध हुये उनसे संख्यात गुणे हैं । जम्बूद्वीप से सिद्ध हुये उनसे संख्यात गुणे हैं । धातकी खंड से सिद्ध हुये उनसे संख्यात गुणे हैं । पुष्कराध द्वीप से सिद्ध हुये उनसे संख्यात गुणें हैं। इस प्रकार इस मनुष्यलोक के सर्व स्थानों से, जल से, स्थल से, नभ से, ढाई द्वीप और दो समुदों से, ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और मध्यलोक से, सर्व क्षेत्र, पर्बत, गुफा, नदी, सरोवर, वन, उपवन आदि से जो सिद्ध हये हैं, होते हैं और होंगे, उन सब अतीत, अनागत और वर्तमान इन तीनों कालों के सर्वसिद्धों को मेरा अनंत-अनंत बार नमोस्तु होवे । इस प्रकार "णियमं णियमस्स फलं" इत्यादि रूप से अन्य रचना का उद्देश्य १. तत्वार्थवार्तिक, अ० १०, सूत्र ९ की टीफा से ।

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