Book Title: Niyamsara Prabhrut
Author(s): Kundkundacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 590
________________ टीकाकाः प्रशस्तिः आदिब्रह्माणमाध्याय, धर्मसृष्टः विधायकम् । टोकान्ते मंगलार्थ तं भक्त्या हर्षान्नमाम्यहम् ॥१॥ चतुर्विशतितीर्थेशान् नत्वा तत्समवाधिके । शरणे मुनयश्चार्या जाता तांस्ताश्च नौम्यहम् ॥२॥ पंचनवतिलक्षणाण्यशोतिसहस्रसंख्यकान् । वंदे वृषभसेनावीन् सर्वानन्याश्च संयतान् ॥३॥ त्रिकोटिषष्टिलक्षाणि षट्पंचाशत् शतानि च । पंचाशवायिका वंदे ब्राह्मयाधाश्चान्यका अपि ॥४॥ जंबो क्षेत्र बोया गरे । श्रीवीरशासने सूरिः कुन्द न्दगुरुमहान् ॥५।। मूलसंघे च तन्नाम्ना कुदकुंदान्वयोऽत्र यः । गच्छ सरस्वतीनाम्नि बलात्कारे पणे शुभे ॥६॥ धर्मसृष्टि के विधाता श्री आदिब्रह्मा-भगवान् आदिनाथ का मन में ध्यान करके मैं टीका के अंत में मंगल के लिये हर्ष से भक्तिपूर्वक उनको नमस्कार करती हैं। वृषभदेव से लेकर वीरप्रभु तक चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार करके उनके समवसरण में जो मुनि और आर्यिका हुये हैं, उन मुनियों को और उन आर्यिकाओं को भी मैं नमस्कार करती हैं। पंचानवे लाख अस्सी हजार संख्या से युक्त जो वृषभसेन गणधर आदि मुनिगण हैं, उन सबकी और अन्य जो भी मुनि हो चुके हैं, उन सबकी मैं वंदना करती हूँ । तीन करोड़ साठ लाख छप्पन सौ पचास (३६००५६५०) इतने प्रमाण जो ब्राह्मी आदि आर्यिकायें हैं तथा और भी जो आर्यिकायें हो चुकी हैं, उन सबकी मैं वंदना करती है। इस जंबूद्वीप के भरत नाम के पहले क्षेत्र में आर्यखंड है। उसमें आज श्री महावीर स्वामी का शासन चल रहा है। इस वीरशासन में श्री कुन्दकुन्द नाम के महान् आचार्य हुये हैं । मूलसंघ में उनके नाम से यहाँ पर कुन्दकुन्दाम्नाय है । उसमें सरस्वती गच्छ है और बलात्कार गण है। इसमें चारित्र चक्रवर्ती

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