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नियमसार प्रामृतम्
अत्र नियमसारग्रन्थे पूर्वोक्तक्रमेण त्रिभि: सूत्रः परमसमाधिस्वरूपनिरूपणम्, नवभिः सूत्रेः परमसाम्यसुधारसदाधिनिमग्नमहाश्रमणस्यैव शत्रवत्सामायिकसंयमस्वरूपकथनम्, इति द्वादशगाथासूत्र : अत्तराधिकारद्वयं समाप्तम् ।
इति श्रीभगवत्कुन्दकुन्दाचार्यप्रणीतनियमसारप्राभृतग्रन्थे ज्ञानमत्यायिकाकृतस्याद्वादचंद्रिकानाम टीकायां निश्चय मोक्षमार्गमहा धिकारमध्ये परमसमाधिनामा नवमोऽधिकारः समाप्तः ।
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में पूर्वो की
इस नियमसार परमसमाधि के स्वरूप का निरूपण है, पुनः नव सूत्रों द्वारा परमसाम्यसुधारस के समुद्र में निमग्न हुए महाश्रमण के ही शाश्वत काल सामायिक संयम होता है. ऐसा कथन किया है। इन बारह गाथाओं द्वारा यहाँ दो अंतराधिकार पूर्ण हुए हैं ।
इस प्रकार भगवान् श्रीकुंदकुंदाचार्य प्रणीत नियमसार - प्राभृत ग्रंथ में ज्ञानमती आर्यिकाकृत स्वाद्वादचंद्रिका नाम की टीका में निश्चय मोक्षमार्ग महाअधिकार के मध्य परमसमाधि नामक नवम अधिकार समाप्त हुआ ।
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