________________
नियमसार-प्राभृतम् सुहुमा हवन्ति खंधा पावोग्गा कम्मवग्गणस्स पुणो।
तविवरीया खंधा अइसुहमा इदि परुर्वेदि ॥२४॥
अइथूलथूल थूलं धूलसुहुमं च सुहुमथूलं च सुहुमं अइसुहमं इदि धरादियं छन्भेयं होदि-अतिस्थूलस्थूलाः स्थूलाः स्थूलसूक्ष्माः च सूक्ष्मस्थूलाः च सूक्ष्माः अतिसूक्ष्मा इति धरावयः पुद्गलस्कंधाः षड्भेदाः भवन्ति । भूपधदमादीया खंधा अइथूलथूदमिदि भणिदा-भूपर्वताधाः स्कंधा अतिस्थूलस्थूला इति नाम्ना भणिताः । सप्पीजलतेलमादीया थूला इदि विष्णेया-सपिर्जलतेलाद्याः स्कंधाः स्थूला इति विज्ञेयाः । छायातबमादीया थलेदरखंधमिदि वियाणाहि-छायातपाद्याः स्थलतरस्कंधाः स्यूलसूक्ष्माः स्कंधा दर्दश विजानीहि: चतरपनिशम्यामधा सुहमथलेदि भणिया-चतुरक्षविषयाश्च स्कंधाः सूक्ष्मस्थूला इति भणिताः । पुणो कम्मवग्गणस्स पावोग्गा खंधा सुहमा हवंति-पुनः कर्मवर्गणस्य प्रायोग्याः स्कंधाः सूक्ष्मा भवन्ति ।
प्रकार से (धरादियं छब्भेयं होदि) पृथ्वी आदि छह भेद रूप पुद्गल होते हैं । (भूपञ्चदमादीया खंधा) पृथ्वी, पर्वत आदि स्कंध (अइथूलथूलनिदि भणिदा) अतिस्थूलस्थूल इस नाम से कहे गये हैं। (सप्पीजलतेलमादीया) घी, जल, तेल आदि पदार्थ (थूला इदि विण्णेया) स्थूल इस नाम से जानना चाहिये। (छायातवमादीया थूलेदरखंधमिदि) छाया, घाम आदि को स्थूलस्थूल स्कंध इस तरह (वियाणाहि) जानो (चउरक्खविसया य) और चक्षुइंद्रिय से अतिरिक्त चारों इंद्रियों के विषय (सुहुम)लेदि खंधा भणिया) सूक्ष्मस्थूल स्कंध इस नाम से कहे गये हैं । (कम्मवग्गणस्सपावोग्गा) कर्मवर्गणा के योग्य (खंधा) स्कंध (सुहमा हवंति) सूक्ष्म होते हैं। (पूणो तविवरीया खंधा) पुनः इनसे विपरीत स्कंध को (अइसहमा इदि परूवेंदि) 'अतिसूक्ष्म' इस नाम से प्ररूपित करते हैं ।।२१-२४॥
टीका-अतिबादरबादर, बादर, बादरसूक्ष्म, सूक्ष्मबादर, सूक्ष्म और अतिसूक्ष्म पुद्गल स्कंध के ये छह भेद हैं, जो कि पृथ्वी आदि रूप हैं। पृथ्वी, पर्वत आदि 'अतिबादरबादर' हैं। घी, तेल, जल आदि पदार्थ 'बादर स्कंध' हैं । छाया, धूप, चाँदनी आदि 'बादरसूक्ष्म' है, स्पर्शन रसना घ्राण और कर्ण इन्द्रिय के विषय 'सूक्ष्मबादर' स्कंध हैं, कर्मवर्गणा के योग्य पुद्गलस्कंध 'सूक्ष्म' हैं और इनसे विपरीत