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नियमसार-प्राभृतम् ननु क्रियावन्ति हि जलादीनि मत्स्यादीनां गतिस्थित्यवगाहनक्रियायां निमिसानि दृश्यन्ते, न च निष्क्रियाणि । अतः धर्मादीनां गत्यादिक्रियाहेतुत्वं नोपपद्यते ? सत्यमुक्तं भवता, परन्तु एतानि द्रव्याणि गत्यादी सहायकमात्रत्वेनैव विवक्ष्यन्ते, अतो निष्क्रियत्वेऽप्येषां गत्याविक्रियानिवृत्ति प्रति बलाधानमात्रमसाधारणमवगन्तव्यम् । तहि एषां धर्मादीनां द्रव्यत्वं नोपपद्यते लक्षणाभावात् ? नेतद् वक्तव्यं, कथं ? द्रव्यत्वलक्षणसद्भावात् । तद्यथा-स्वपरनिमित्तेन उत्पादो द्वधा-अनन्तानामगुरुलघुगुणानामागमप्रामाण्यावभ्युपगम्यमानानां षट्स्थानपतितवृद्धिहानिरूपेण वर्तमानानां स्वभावादेव एषां द्रव्याणां उत्पादो व्ययश्च भवति । अश्वादेर्गतिस्थित्यवगाहनहेतुत्वात् क्षणे क्षणे तेषां भेदात च परनिमित्तेनापि उत्पादो व्ययश्च व्यवहियेते। अतः "उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्" इति सूत्रलक्षणत्वेन एतेषां द्रव्यत्वं घटेतव ।।
तात्पर्यमेतत-न केवलं द्रव्ये संशा गुद कीपनगलयोः गतिस्थित्योनिमित्ते, किन्तु सिद्धशुद्धजीवपुद्गलयोरपि निमित्त स्तः । यतः धर्मास्ति
समाधान--आपका कहना ठीक है, परन्तु ये द्रव्य गति आदि में सहायकमात्र से ही विवक्षित हैं । इसलिये इनके निष्क्रिय होने पर भी गति आदि क्रिया के करने के प्रति इनमें बलाधान मात्र असाधारण धर्म माना गया है ।
शंका-तब इनमें द्रव्यपना नहीं बनेगा, द्रव्य का लक्षण नहीं घटेगा ? समाधान-ऐसा नहीं कहना । शंका-क्यों ?
समाधान-क्योंकि इनमें 'द्रव्यत्व' लक्षण विद्यमान है । देखिये-स्व और पर के निमित्त से उत्पाद दो प्रकार का है। आगम प्रमाण से स्वीकार किये गये अनन्त अगुरुलघु गुणों-जो कि छह स्थान से होने वाली हानि-वृद्धि के क्रम से वर्तमान हैं-का निमित्त पाकर स्वभाव से ही इन द्रव्यों में उत्पाद-व्यय होता है । घोड़े आदि के गमन करने, ठहरने व स्थान देने में हेतु होने से क्षण-क्षण में इनमें भेद होने से पर-निमित्त से भी इन द्रव्यों में "उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से जो युक्त है वह सत् है" इस सूत्र कथित द्रव्य के लक्षण से इन धर्म-अधर्म और आकाश में द्रव्यपना घटित हो ही जाता है।
तात्पर्य यह हुआ कि ये धर्म अधर्म द्रव्य संसारी अशुद्ध जीव और पुद्गल की ही गति-स्थिति में केवल निमित्त हों इतनी ही बात नहीं है, किंतु शुब हुये