________________
नियमसार-प्राभृतम् मुत्तस्स संखेज्जासंखेज्माणतपदेसा हर्वति-मूर्तस्य पुद्गल द्रव्यस्य संख्यासासंख्यातामसप्रदेशाः भवन्ति । धम्मामार. ५ यो बीवारस असंखदेसा हु-धर्माधर्मयोः पुनः जीवस्य असंख्यदेशाः खलु निश्चयेन । लोयायासे ताव-लोकाकाशे तद्वत असंख्यप्रवेशसः । इदरस्स अणंतये देसा हवे-इतरस्य अनंता: देशाः प्रदेशा भवति । कालस्स ण कायत्तं-कालस्य न कायस्वं । जम्हा एयपदेसो हवे-यस्मात् यतः कारणात् एकप्रदेशो भवेत् इति।
इतो विस्तर:-पुद्गलबन्यस्य एकप्रदेशमादि कृत्वा संख्येयाः असंख्येया अनन्ताश्च प्रदेशाः सन्ति, धर्मस्य अधर्मस्य एकजीवस्य लोकाकाशस्य च समानरूपेणासंख्याताः प्रदेशाः सन्ति । अलोकाकाशस्यानन्ताः प्रदेशाः विद्यन्ते, कालद्रव्यस्यैकप्रदेश एवातो तस्य न कायत्वम् ।
यदि एकप्रदेशस्य द्रव्यस्य न फायत्वं तहि परमाणरपि कथं कायसंज्ञा लभते, तस्य एकप्रदेशत्वात् ? सत्यमुक्तं भवता, किन्तु परमाणुष प्रचयप्रदेशशक्तिसद्भावात् कायत्वमास्यायते, कलाणुषु तु तच्छक्त्यभावात् उपचारेणापि कायस्वं न करूप्यते।
टोका---मूर्तिक पुद्गल द्रव्य के संख्यात, असंख्यात और अनंत प्रदेश होते हैं। धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य और एक जीव के असंख्यात प्रदेश होते हैं। लोकाकाश में भी उतने ही असंख्यात प्रदेश हैं। इतर-अर्थात् अलोकाकाश के अनंत प्रदेश हैं । काल में कायपना नहीं है, इस कारण से उसमें एक प्रदेश होता है ।
इसी को विस्तार से कहते हैं- पद्गल द्रष्य में एक प्रदेश से लेकर संख्यात और अनंत प्रदेश तक होते हैं। धर्म, अधर्म, एक जीव और लोकाकाश में एक सदृश असंख्यात प्रदेश होते हैं । अलोकाकाश में अनंत प्रदेश विद्यमान हैं और काल में एक प्रदेश है, इसीलिये वह काय नहीं है ।
शंका-यदि एकप्रदेशी द्रव्य को कायपना नहीं है तो परमाणु भी कैसे 'काय' नाम को पायेगा, क्योंकि वह भी तो एकप्रदेशो है ?
समाधान--आपने ठीक कहा है, किंतु परमाणुओं में प्रदेशों के प्रचय की शक्ति का सद्भाव है, इसलिये उन्हें 'काय' कहते हैं। परंतु कालाणुओं में प्रदेशप्रचय की शक्ति न होने से उपचार में भी उसमें कायत्व नहीं है ।