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नियमसार-प्राभूतम् पुनरपि के के विकारः न सन्ति इति प्रश्न उत्तरयन्ति आचार्या:णिग्गंथो णीरागो णिस्सल्लो सयलदोसणिम्मुक्को । णिक्कामो पिक्कोहो जिम्माणो णिम्मदो अप्पा ॥४४॥
अप्पा-अयमात्मा। णिगंथो जीरागो णिस्सल्लो सयलदोसणिम्मुक्को णिक्कामो णिक्कोहो णिम्माणो हिम्मदो-निर्ग्रन्थः, नीरागः, निःशल्यः, सकलदोषनिर्मुक्तः, निष्कामः, निष्क्रोधः, निर्मानः, निर्मदश्च वर्तते ।
अयमात्मा बाह्याभ्यन्तरपरिग्रहप्रन्थिभ्यो निष्क्रान्तः निर्ग्रन्थः । रागपरिणतेः निर्गतः नीरागः । मायामिथ्यानिदानत्रयशल्पेभ्यो निर्गतः निःशल्यः । सकलवोषेभ्यः निर्मुक्तः निर्गत: सकलदोषनिर्मुक्तः । सांसारिकसुखस्य इच्छाभ्यो निर्गतः निष्कामः । क्रोधानिष्क्रांतः निष्क्रोधः । मानानिर्गतः निर्मानः । जातिकुलायष्टविधमवेभ्यो निर्गतः निर्मदः ।
अयमत्र भावार्थ:-यद्यपि व्यवहारनयेन संसारावस्थायां अयं आत्मा
पुनः और भी क्या-क्या विकार नहीं हैं ? ऐसा पूछने पर आचार्य उत्तर देते हैं
अन्वयार्य-(अप्पा) यह आत्मा (णिग्गंथो णीरागो णिस्सल्लो सयलदोसणिम्मुक्को) निग्रंथ, नीराग, निःशल्य, सकलदोष से निर्मुक्त है । (णिक्कामो णिक्कोहो णिम्माणो हिम्मदो) निष्काम, निष्क्रोध, निर्मान और निर्मद है ॥४४!।
टोका--यह आत्मा ग्रंथि-परिग्रह रहित, वीतराग, शल्यरहित, सकल दोषों से रहित, इच्छारहित, क्रोधरहित, मानरहित और मद से रहित है ।
बाह्य और आभ्यंतर परिग्रहरूप ग्रंथि से रहित होने से यह आत्मा निग्रंथ है, राग परिणति से रहित होने से नीराग है, माया मिथ्या और निदान इन तीन शल्यों से रहित होने से निःशल्य है। सकल दोषों से रहित होने से सकलदोषनिर्मुक्त है, सांसारिक सुख की इच्छाओं से रहित होने से निष्काम है, क्रोध से रहित होने से निष्क्रोध है, मान से रहित होने से निर्मान है और जाति कुल आदि आठविध मदों से रहित होने से निर्मद है।
यहां भावार्थ यह है कि यद्यपि व्यवहारनय से यह आत्मा संसार अवस्था