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नियमसार- प्राभूतम्
काय करियाणियत्ती - कार्य क्रियानिवृत्तिः काउसग्गो कायोत्सर्गः सरीरंगे गुत्ती - सैथ शरीरके गुप्तिः शरीरगुप्तिरिति । वा हिंसाइणियत्ती वा अथवा हिंसादिनिवृत्ति हिमातृतीर्यादिवादानां विशेधः सापि सरीरगुति ति णिद्दिट्ठा - शरीर. गुप्तिः इति निर्दिष्ट काय गुप्तिः इति कथिता गणधरादिवेवैः निश्चयनयेन ।
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तद्यथा- - शरीर चेष्टायाः अप्रवृत्तिः, कायस्य उत्सर्गः त्यागः कायोत्सर्गः अर्थात् काये ममत्वपरिणामस्य उत्सर्गः कायोत्सर्गः - सा निश्चयकाय गुप्तिः, अथवा हिंसा विपापक्रियायाः सर्वथा अभावः निश्चयकाय गुप्तिः । गुप्तिशब्दस्य कोऽर्थः ? गुध्यन्ते रक्ष्यन्ते सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि यकाभिस्ता गुप्तयः । अथवा गोप्यते रक्ष्यते आत्मा मिथ्यात्वासंयमकषायेभ्यो याभिस्ता गुप्तयः इति गीयते ।
उक्तं चान्यत्र दृष्टांतद्वारेण आसां माहात्म्यम् — खेत्तस्सवई णयरस्स खाइया अहव होइ पायारी | तह पावस्त गिरोहो ताओ गुत्ती साहुस्स ॥१३७॥
यथा क्षेत्रस्य शस्यस्य वृतिः रक्षा, नगरस्य वा वातिका अथवा प्राकारो
टीका - काय क्रियाओं का निरूध करके कायोत्सर्ग करना कायगुप्ति है । या हिंसा असत्य त्रौर्य आदि भावों के अभाव को भी कायगुप्ति कहा है । गणधरादिदेव ने इसे निश्चयनय से गुप्ति कहा है । उसी को कहते हैं
शरीर की चेष्टा का अभाव होना, काय का उत्सर्ग-त्याग, अर्थात् काय से ममत्वपरिणाम का त्याग करना कायोत्सर्ग है। इसी को निश्चय काय गुप्ति कहते हैं । अथवा हिंसादि पाप क्रियाओं का सर्वथा अभाव हो जाना निश्चयकाय गुप्ति है।
शंका- - गुप्ति शब्द का क्या अर्थ है ?
समाधान - जिनके द्वारा सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र गोपे जाते हैं रक्षित असंयम कषायों से
किए जाते हैं वह गुप्तियाँ हैं । अथवा जिनके द्वारा मिथ्यात्व आत्मा गोपितरक्षित की जाती हैं उन्हें ही गुप्तियाँ कहते हैं । अन्य ग्रन्थ में दृष्टांत द्वारा इन्हीं का माहात्म्य कहा है--जैसे खेत की वृत्ति - बाड़, नगर की खाई या परकोटा रक्षा करते हैं वैसे ही साधु की गुप्तियाँ पाप का निरोध करती हैं । अर्थात् जैसे खेत की रक्षा बाड़ से होती है, नगर की
१. मूलाधार अधिकार ५ ।