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मियमसार-प्राभृतम् सूत्राणि, निश्चयनयापेक्षया सर्वशुभाशुभत्रियोगप्रवृत्तिनिरोधप्रधानत्वेन द्वे सूत्रे, इति पंचभिः सूत्रः गुप्तिस्वरूपप्रतिपादकोऽयं तृतीयोऽन्तराधिकारः समाप्तः ।
अतः परं षडावश्यक क्रियान्तर्गतत्वेन ध्येयरूपतया वा सिद्धस्वरूपत्वेन साध्यस्य निजात्मन' आदर्शा इव वा ये केचित् परमेष्ठिशब्दवाच्याः परमगुरवः, पंचभिः सूत्रः तेषां स्वरूपं कथ्यते । अधुना भनिरपि मोक्षस्य कारणमिति सूचपन्तः सूत्रकारा अहत्परमेष्ठिनः स्वरूपं निरूपयन्ति
घणघाइकम्मरहिया केवलणाणाइपरमगुणसहिया। * चोत्तिसअदिसअजुत्ता अरिहंता एरिसा होति ॥७॥ ___ अरिहंता एरिसा होति-अर्हन्तः ईदृशाः भवन्ति । कोवृशास्ते ? घणघाइकम्मरहिया-घनघातिकर्मरहिताः निबिडानि च आस्मगणघातकानि ज्ञानदर्शनावरणमोहनीयान्तरायाख्यकर्माणि तैः रहिताः। पुनश्च कथंभूताः ? केवलणाणाइपरमगुणसहिया-केवलज्ञानाविपरमगुणसहिताः केवलम् असहायम् अनंतं वा ज्ञानम् तीनों योगों की प्रवृत्तियों को रोकने की प्रधानता से दो सूत्र हुए हैं, इस तरह पाँच सूत्रों द्वारा गुप्ति के स्वरूप का प्रतिपादक यह तीसरा अंतराधिकार समाप्त हुआ।
इसके बाद छह आवश्यक क्रिया के अंतर्गत होने से जो ध्येयरूप हैं, अथवा सिद्ध स्वरूप से साध्य जो अपनी आत्मा उसके लिये आदर्श के समान जो कोई परमेष्ठी शब्द से वाच्य परमगुरु हैं, पाँच सूत्रों में उनका स्वरूप कहेंगे।
अब भक्ति भी मोक्ष का कारण है, ऐसा सूचित करते हुए सूत्रकार श्री कुंदकुन्ददेव अहंत परमेष्ठी का स्वरूप निरूपित करते हैं
अन्वयार्थ- (धणघाइकम्मरहिया) जो घनघाति कर्मों से रहित (केवलणाणाइपरमगुणसहिया) केवलज्ञानादि परम गुणों से सहित (चोत्तिसअदिसमजुत्ता) और चौंतीस अतिशयों से युक्त हैं, (एरिसा अरिहंता होति) ऐसे अहंतदेव होते हैं ॥७१॥
टीका--जो निबिड आत्मगुणों के घातक ज्ञानाबरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय इन चार घातिया कर्मों से रहित हैं, केवल-असहाय अथवा अनंत ज्ञान आदि सर्वोत्कृष्ट गुणों से रहित हैं और तीर्थकर प्रकृति नाम कर्म के निमित्त
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