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नियमसार-प्राभृतस इति श्रीभगवत्कुन्दकुन्दाचार्यप्रणीतनियमसारप्राभूतग्नन्थे ज्ञानमत्यायिकाकृत"स्यावादचन्द्रिका"-नामटीकायां निश्चयमोक्षमार्गमहाधिकारमध्ये
परमार्थप्रतिक्रमणनामा पंचमोऽधिकारः समाप्तः। सार्थकता तथा इस अधिकार का उपसंहार किया गया है। इस प्रकार इन अठारह सूत्रों द्वारा तीन अंतराधिकार पूर्ण हुये हैं ।
इस प्रकार भगवान् श्रीकुन्दकुन्दाचार्य-प्रणीत नियमसार-प्राभृत ग्रंथ में "ज्ञानमती आर्यिका' कृत स्याद्वादचंद्रिका नामकी टीका में निश्चयमोक्षमार्ग महाधिकार के अंतर्गत 'परमार्थप्रतिक्रमण'
नाम का यह पांचवाँ अधिकार समाप्त हुआ।