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नियमसार-प्राभृतम् पोथइकमंडलाइं गहणविसग्गेषु पयतपरिणामो-पोयोकमंडल्वादिग्रहणविसर्गयोः प्रयत्नपरिणामः पुस्तककमंडलायुपधीनामादाने निक्षेपणे च प्रयत्नपूर्वको यो भावः । आदाबणणिक्खेवणस मिदी होदित्ति णिहिट्ठा-सा आदाननिक्षेपणसमितिः भवति झमि निर्दिक शववादिभिः ।
इतो विस्तर:-केवलज्ञानस्य बीजभूतं भावश्रुतज्ञानम्, तस्य साधक द्रव्यश्रुतज्ञानम् तदुभयमाविर्भावयितु शास्त्रं एतज्ज्ञानोपकरणम् । पुरोषादिमलापहरणस्य साधनं कमंडलुः, एतत् शौचोपकरणम् । आदिशब्देन संयमोपकरणमन्योपकरणं च । स्वपतितमयूरपिच्छानां पिपिछका सैव जीवदयानिमित्तं संयमोपकरणम् । संस्तरहेतोः काष्ठफलकतृणकटादि अन्योरकरणम् । ननु अन्योपकरणं का लिखितमास्ते ? प्राचीनाचारग्रंथे मूलाचारे, तथाहि
णाणुवहि जमुहि सउचुहि अण्णमप्पमुहि वा ।
पयदं गहणिक्खेवो समिदी आवाणणिक्खेवा' ॥१४॥ आदि ग्रहण करने और रखने में प्रयत्नरूप परिणाम का होना (आदावणणिक्खेत्रणसमिदी) यह आदान निक्षेपण समिति (होदित्ति णिट्टिा) होती है, ऐसा कहा है ।।६४।।
टोका-पुस्तक, कमंडलु, पिच्छी आदि उपधि को लेने और रखने में प्रयत्न पूर्वक जो परिणाम है या प्रवृत्ति है, उसी को सर्वज्ञदेव आदि ने आदान निक्षेषण समिति कहा है।
उसी को कहते हैं--केवलज्ञान का बीजभूत भाव श्रुतज्ञान है, उसका साधक द्रव्यश्रुतजान है, उन दोनों को प्रगट करने के लिये जो शास्त्र हैं, वे ज्ञान के उपकरण हैं। मल मूत्रादि की शुद्धि के लिए साधन कमंडलु यह शौच का उपकरण है । आदि शब्द से संयम का उपकरण और अन्य भी उपकरण ग्रहण करना चाहिए। स्वयं गिरे हुए मयूर के पंखों की पिच्छिका वही जीवदया के निमित्त संयम का उपकरण है । संस्तर के लिये काष्ठफलक, तृण की चटाई आदि अन्य उपकरण हैं।
शंका-यह अन्य उपकरण कहाँ लिखा है ?
समाधान-प्राचीन आचार ग्रन्थ मूलाचार में कहा है। उसी को कहते हैं-"ज्ञानोपकरण, संयम का उपकरण, शौच का उपकरण अथवा अन्य कुछ अल्प उपधि को प्रयत्नपूर्वक ग्रहण करना और रखना" यह आदान निक्षेपण समिति है। १. मूलाचार अधिकार है।