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नियमसार-प्राभूतम्
अधूना धर्माधर्माकाशतत्त्वानि प्रतिपादयन्तो भगमन्तः प्राहु:___गमणणिमित्तं धम्ममधम्म ठिदि जीवपुम्गलाणं च ।
अवगहणं आयासं जीवादीसव्वदवाणं ॥३०॥
जीवपुग्गलाणं च गमणणिमित्तं धम्म-जीवपुद्गलानां च गमननिमित्तं धर्म धर्मब्रव्यम् । ठिदि अधम्म-स्थितेः निमित्तं अधर्मम् अधर्मद्र व्यमिति । जोवादोसब्बदव्वाणं अवगहणं आयासं-जीवादिसर्वअध्याणाम् अवगाहनम् आकाशम् आकाशव्रव्यमिति ज्ञातव्यम् ।
धर्माधर्माकाशद्रव्याणि त्रीणि अपि अमूर्तानि निष्क्रियाणि च स्वयं क्रियापरिणतानां जीवपुदगलानां गमनक्रियायां निमित्तं भवति धर्मद्रव्यम् । तेषामेव जीवपुद्गलानां स्थितेः निमित्तं भवति अधर्मद्रव्यम् । तथा जीक्युद्गलधर्माधर्मकालाख्यसर्वद्रव्याणामवकाशदानं ददात्याकाशद्र व्यम् ।
भगवान् श्री कुन्दकुन्ददेव अब धर्म, अधर्म और आकाश इन तीन तत्त्वों को प्रतिपादित करते हुये कहते हैं --
___ अन्वयार्थ--(जीवपुग्गलाणं गमणणिमित्तं धम्म) जीव और पुद्गलों के गमन में निमित्त धर्म द्रव्य है (च ठिदि अधम्म) और इनके ठहरने में निमित्त अधर्म द्रव्य है । (जीवादीसव्वदच्वाणं अवगहणं आयासं) जीव आदि सभी द्रव्यों को अबगाहन देने वाला आकाश द्रव्य है ॥३०॥
टीका-जीव पुद्गलों की गति में निमित्त धर्म द्रव्य है, उन्हीं की स्थिति में निमित्त अधर्म द्रव्य है और सभी द्रव्यों को स्थान देने वाला आकाश द्रव्य है । धर्म, अधर्म और आकाश ये तीनों द्रव्य अमतिक हैं और निष्क्रिय हैं । जो स्वयं क्रिया में परिणत हये जीव पुद्गलों के गमन-क्रिया में निमित्त होता है वह धर्मद्रव्य है। उन्हीं जीव पुद्गलों को ठहराने में जो निमित्त है वह अधर्मद्रव्य है। और जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म तथा काल-इन द्रव्यों को जो अवकाश देता है वह आकाशद्रव्य है।
शंका--जो स्वयं क्रियावान् जल आदि हैं वे ही मछली आदि के चलने, ठहरने या स्थान देने रूप क्रिया में निमित्त देखे जाते हैं, न कि निष्क्रिय वस्तुयें । इसलिये धर्मादि (निष्क्रिय) द्रव्यों को गति आदि किया में कारण कहना ठीक नहीं है।