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नियमसार-प्राभृतम् जं दव्व-यद् द्रव्यम् । अत्तादि अत्तमझं अतंत्तं-आत्मादि आत्ममध्यम् आत्मान्तम् । इदिए णेत्र गेज्डां-इंन्द्रिय व ग्राह्यम् । अविभागी-अविभागी विभागरहितः । तं परमाणू वियाणाहि-तट परमाणु विजानीहि ।
इतो विस्तरः-यस्य पुदगलद्रव्यमा अत्मा पारेख अहिरय आत्मा स्वरूपमेव मध्यं, यस्य आत्मा स्वरूपमेव अन्तं तथा च यत् इंद्रियः ग्रहीतुमपि न शक्यते, विभागरहितं चांशशन्यञ्च तदेव द्रव्यं 'परमाण' इति नाम्ना आख्यायते । अयं परमाणुः सूक्ष्मातिसूक्ष्मोऽपि अनेकान्तस्वात् स्यादन्त्यः, स्यान्मान्त्यः, स्यात्सूक्ष्मः, स्यात्स्थूलः, स्यान्नित्यः, स्यादनित्यः, स्यादेकः, स्यादनेकः, स्यात्कार्यलिङ्गः, स्यान्न कार्यलिङ्गश्चेति । तद्यथा-अस्मात् पुनर्भेदाभावात् स्यादन्त्यः, प्रदेशभेदाभावेऽपि पुनरपि गुणभेदसद्भावात् स्यान्नान्त्यः। सूक्ष्मपरिणामसभावात् स्यात्सूक्ष्मः, स्थलकार्यप्रभवयोनित्वात् म्यास्थलः । द्रव्यत्वापरित्यागात् स्यान्नित्यः, बंधभेदपर्यायादेशात् गुणान्तरसङक्रमणदर्शनाच्च स्यादनित्यः । निष्प्रवेशत्वपर्यायावेशात् (जं अविभागी दव) ऐसा जो अविभागी द्रव्य है, (तं परमाणु वियाणाहि) उसे परमाणु जानो ।।२६।।
____टीका-जिस पुद्गलद्रव्य का आत्म-स्वरूप ही आदि है, जिसका स्वरूप ही मध्य है और जिसका स्वरूप ही अंत है, जिसका इंद्रियों के द्वारा ग्रहण करना शक्य नहीं है और जिसका दूसरा विभाव-अंश नहीं हो सकता है, वही 'द्रव्य परमाणु' इस नाम से कहा जाता है। यह परमाणु सूक्ष्म से भी सूक्ष्म है, फिर भी अनेकांत रूप होने से यह कथंचित् अन्त्य है, और कथंचित् अन्त्य नहीं है । कथंचित् सक्षम है, कथंचित् स्थल है। कथंचित् नित्य है, कथंचित् अनित्य है । कथंचित् एक है, कथचित् अनेक है । कथंचित् कालिंग है और कथंचित् कार्यलिंग नहीं है । इसी का खुलासा करते हैं
इस परमाणु में पुनः दूसरा भेद नहीं हो सकता है, अतः यह कथंचित् अन्त्य है। प्रदेश भेद का अभाव होने पर भी इसमें गुणों से भेद होता है, अतः यह कथंचित् सूक्ष्म है । स्थूलकार्य की उत्पत्ति में योनिरूप है, अतः कथंचित् स्थूल है। द्रव्यपने को नहीं छोड़ने से यह कथंचित् नित्य है। बंध भेदपर्याय की अपेक्षा से एक गुण दूसरे गुण रूप संक्रमण करता है, अतः कथंचित् अनित्य है। प्रदेश रहित पर्याय की अपेक्षा से कथंचित् एक है, अनेकप्रदेशी स्कंधरूप परिण मन की शक्ति वाला होने