________________
KE
नियमसार-प्राभृतम् स्कंधभेदान् प्रतिपाय अधुना परमाणोः सौ मेदौ प्रतिपादयन्ति
धाउचउक्कस्स पुणो जं हेऊ कारणं तितं यो। खंधाणां अवसाणो णादव्यो कज्जपरमाण ॥२५॥
जं पुणो धाउचउक्कस्स हेऊयः पुनः धातचतष्कस्य हेतुः। तं कारणं ति यो-सः कारणं कारणपरमाणुः इति ज्ञेयः। तहि कः कार्यपरमाणः ? खंधाणां अवसाणो कज्जपरमाणू णादब्बो-स्कंधानाम् अवसानः कार्यपरमाणुः ज्ञातव्यः ।
तद्यथा-पृथियोजलाग्निवायवश्चत्वार इमे धातुशब्देन प्रोच्यन्ते, एतच्चती धातूनां यः हेतुः स एव कारणपरमाणुः उच्यते, स्कंधस्य निमित्तत्वात् । तथा च यः स्कंधानां अवसानः अन्त्यभागः स एव कार्य-परमाणुः, भेदादुपजायमानस्वात् ।
उक्तं च श्रीमद्भट्टाफलडूचेवैः
स्कंध के भदों को बतलाकर अब आचार्य परमाणु के दो भेदों का प्रतिपादन करते हैं--
अन्वयार्थ-(पुणो जं धाउचउक्कस्स हेऊ) पुनः जो चार धातुओं का हेतु है, (तं कारणं ति णेयो) उसे 'कारण परमाणु' जानना चाहिये । (खंधाणां अवसाणो) और स्कंधों को जो अंत है (कज्जपरमाणू णादवो) उसे 'कार्य परमाणु' जानना चाहिये ।।२५।।
टोका--जो चार धातुओं का कारण है वह 'कारण परमाणु' है और जो स्कंधों का अंतिमरूप है, वह 'कार्य परमाणु' है । ऐसा जानना चाहिये ।
उसी को कहते हैं—पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु ये चार 'धातु' शब्द से कहे जाते हैं । इन चारों का जो कारण है वहीं 'कारण परमाणु' कहा जाता है, क्योंकि वह स्कंधों के लिये निमित्त है । उसी प्रकार जो स्कंधों का अंतिम भाग है वही 'कार्य परमाणु' है, क्योंकि यह भेद से उत्पन्न हुआ है ।
श्रीमान् भट्टाकलंकदेव ने कहा भी है