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नियमसार- प्राभूतम्
स्वभावगुणाः, परद्रव्यनिरपेक्षाः षड्गुणहान्यादिरूपेण उत्पादव्ययध्रौव्यरूपेण वा परिणामाः स्वभाव पर्याया: । द्व्यणुकादिस्कंधस्य पुदगलस्य अनेकरसवर्णगंध स्पर्शाः विभावगुणाः, रसात् रसान्तरपरिणामाः पर्यायाः शब्दादिरूपेण परिणामा वा विभावपर्यायाः, इति पुद्गलद्रव्यस्य सत्यार्थस्वरूपं ज्ञात्वा स्वस्योपरि कथं तस्य प्रभावो वर्तते ? इति रहस्यं वान्विष्य तस्य मूलं मोहमुन्मूल्य निजात्मशक्तिः प्रकटीकर्तव्या ॥ २८॥
पुद्गल द्रव्यस्य लक्षणमुपसंहरन्तो वस्मिन्नपि नयविवक्षां
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भगवन्त:----
प्रदर्शयन्ति
स्याद्वादामृतास्वादिनो
पोग्गलदव्वं उच्च परमाणू णिच्छएण इदरेण । पोग्गलदव्वोत्ति दुगो ववदेसो होदि संस्त ॥२९॥
ये स्वभाव गुण हैं, ये पुद्गल द्रव्य के परमाणु नाम के भेद में रहते हैं, ये परद्रव्य से निरपेक्ष षडगुण हानि आदि रूप से अथवा उत्पाद व्यय श्रोव्यरूप से परिणाम हैं, इसलिये स्वभाव पर्याय हैं । द्वणुक आदि स्कंध नाम से जो पुद्गल है उसमें अनेक रस गंध व स्पर्श रहते हैं, ये विभावगुण हैं ।
रस से रसान्तर परिणमन होना पर्यायें हैं, अथवा शब्दादि रूप से परिणमन करना विभावर्यायें हैं । इस प्रकार से पुद्गल द्रव्य के वास्तविक स्वरूप को जानकर और अपने ऊपर उसका प्रभाव किस प्रकार हो रहा है, इस रहस्य को खाज कर उसका मूल कारण जो मोह है, उसको जड़मूल से उखाड़कर अपनी आत्मशक्ति प्रगट करनी चाहिये ।
भावार्थ -- परमाणु के गुण और पर्यायें स्वभाव गुण पर्यायें हैं और स्कंध की गुण-पर्यायें विभावरूप हैं । यद्यपि गुण पर्यायें स्वभावरूप नहीं मानी गई हैं ||२८||
स्याद्वादमयी अमृत के आस्वादी भगवान् श्री कुन्दकुन्ददेव पुद्गल द्रव्य के लक्षण का उपसंहार करते हुये उसमें भो नय विवक्षा को दिखलाते हैं
अन्वयार्थ - ( णिच्छएण) निश्चय से ( परमाणू पोग्गलदव्वं उच्चइ ) परमाणु पुद्गल द्रव्य कहलाता है । (इदरेण पुणो ) व्यवहार से पुन: (खंधस्स ) स्कंध को (पोग्गल दव्वोत्ति ववदेसो होदि) पुद्गल द्रव्य यह नाम आता है ॥ २९ ॥