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नियमसार-प्राभृतम् भवद्भिः प्रतिज्ञातं तत्पुनः न ज्ञायते पुद्गलद्रव्यस्य के गुणाः के च पर्यायाः ? सत्य मुक्तं भवता, अस्य पुद्गल द्रव्यस्यापि स्वभावविभावगुणपर्यायाः सन्ति त एव भगवत्कुंदकुंदवेवैः निरूप्यन्ते गाथावयेन ॥२६॥ अघुमा भेदपूर्वकत्वेन पुद्गलबध्यस्थ गुणान् गणन्त्याचार्यवेवाः--
एयरसरूवगंधं दोफासं तं हवे सहावगुणं । विहावगुणमिदि भणिदं जिणसमये सव्वपयडत्तं ॥२७॥
तं सहावगुणं हवे-सः स्वभावगुण; भवेत् । सः कः ? एयरसख्वगंधं दो फासं-एकरसरूपगंधः द्विस्पर्शः । कस्य गुणोऽयं ? पुद्गलद्रव्यस्येति । पुनः को विभावगुणः ? विहावगुणं सव्वपयडतं इति भणिदं-विभावगुणः सर्वप्रकटत्वम् इति भणितं सर्येन्द्रि याद्यमिति कथितम् । क्व कथितं ? जिणसमये-जिनसमये जिनेंद्रवेवस्य शासने कथितमिति क्रियाकारकसंबंधः ।
तद्यथा-पुद्गलग व्यस्य विंशतिगुणाः सन्ति । तिक्तकटुकषायाम्लमधुराः वृद्धि का परिणमन होता रहता है, इसलिए इसमें भी अविभाग प्रतिच्छेद अनंत होने से जघन्य गुण से उत्कृष्ट गुणों तक परिणमन होता रहता है। यह परिणमन आगमगम्य है, अत्यंत सूक्ष्म है, फिर भी प्रत्येक वस्तु में अनेकांत घटित होने से श्री भट्टाकलंक देव ने इस परमाणु में भी स्थूल, सूक्ष्म, अन्त्य, अनन्त्य, नित्य, अनित्य आदि धर्म कथंचित् अपेक्षा से घटित किये हैं ॥२६॥
अब आचार्य देव भेदपूर्वक पुद्गल द्रव्य के गुणों का वर्णन करते हैं
अन्वयार्थ—(एयरसरूवगंधं दोफास): एक रस, एक रूप, एक गंध और दो स्पर्श (तं सहावगुणं हवे) यह स्वभाव गुण है । (जिणसमये) जिन-शासन में (सब्बपयडत्तं विहावगुणमिदि भणिदं) सर्व प्रकटता इसको विभावगुण कहा है ॥२७॥
टीका-पुद्गल द्रव्य में एक रस, एक रूप, एक गंध और दो स्पर्श ये स्वभावगुण हैं। तथा सर्व इंद्रियों से ग्राह्य होना यह पुद्गल' का विभाव गुण है। जिनेंद्रदेव के शासन में यह बात कथित है, यहाँ यह क्रिया-कारक-संबंध हुआ।
आगे कहते हैं- पुद्गल द्रव्य में बीस गुण होते हैं। तिक्त, कटु, कषायला, खट्टा और मीठा ये पाँच रस हैं। सफेद, पीला, हरा, लाल और काला ये पाँच