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नियमसार-प्राभूतम् पोग्गलदच्वं दु दुवियप्पं हवेइ-पुद्गलद्रव्यं तु द्विविकल्पं भवति । केन प्रकारेण ? अणुखंधवियप्पेण-अणुस्कंधविकरुपेन अणुस्कंधद्विप्रकाराभ्याम् । स्कंधाः कतिप्रकारा: ? खंधा हु छप्पयारा-स्कंधाः खलु षट्प्रकारा वक्ष्यमाणाः । पुन: परमाणुश्च कतिधा ? परमाणु चेव दुवियप्पो-परमाणुः चैव द्विविकल्पः। इति क्रियाकारकसंबंधः।
इतो विस्तरः-पुरणगलनात्वर्थसंज्ञत्वात् पुद्गलाः, भेदात् संघातात भेवसंघाताभ्यां च पूर्यन्ते गलन्ते चेति पूरणगलनात्मिका क्रियामन्तर्भाव्य पुद्गलशब्दोऽन्वर्थनामा, यथा भास फरोतीति भास्करः । अणूनां निरवयवत्वात् पूरणगलनक्रिया:भावात् पुद्गलवाभाव इति चेत् ? न, गुणापेक्षया तत्सिद्धेः । "स्पारसगन्धवर्णधन्तः पुद्गलाः' इति लक्षणं परमाणुष्वपि वर्तते । एकगुणरूपाविपरिणताः परमाणवः वित्रिचतुःसंख्येयासंख्येयानन्तगुणत्वेन वर्धन्ते, तथैव हानिमपि उपयान्ति इति गुणापेक्षया परणगलनक्रिया तत्र जायतेऽतः पुहगलस्यमबिरुद्धमेव परमाणूनाम् । 'पोग्गलदव्वं उच्चइ परमाणू णिच्छयेणे ।" इति वचनात् अग्ने तु परमाणुष्वेव पुद्गलत्वं मुख्यत्वेनेति कथयिष्यन्त्याचार्यवेवाः।
टोका-पुद्गल द्रव्य के अणु और स्कंध से दो भेद हैं। उनमें स्कंध के छह भेद हैं और परमाणु के दो भेद हैं। यह क्रिया-कारक-संबंध हुआ। अब इसका विस्तार करते हैं-पुद्गल में पूरण-गलन स्वभाव होने से बह 'अन्वर्थ' नाम वाला है । भेद और संघात से अर्थात् टुकड़े-टुकड़े होने और मिलने से इनमें पूरण-गलन देखा जाता है। इस क्रिया को अंतर्भूत करके यह 'पुद्गल' शब्द व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ को धारण कर लेता है । जैसे, जो भास-प्रभा को करता है वह ‘भास्कर' है।
शंका-अणुओं में अवयव न होने से उनमें पूरण-गलन क्रिया का अभाव है । इसलिये ये 'अणु' 'पुद्गल' नहीं कहला सकते ?
समाधान-ऐसा नहीं कहना, गुणों की अपेक्षा से उनमें पुद्गल का लक्षण सिद्ध है । "स्पर्श रस गंध वर्ण वाला पुद्गल है' ऐसा सूत्र है। यह लक्षण परमाणुओं में भी रहता है। रूप के एक गुण आदि से परिणत हुये परमाणु दो, तीन, चार, संख्यात, असंख्यात और अनंत गुणों से बढ़ते रहते हैं, उसी प्रकार से हानि को भी प्राप्त होते रहते हैं। इस तरह गुणों की अपेक्षा से इनमें पूरण-गलन क्रिया १. गाथा २९ ।
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