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(१०३) ___ १ जुद्र वृत्तिवाला न होना और अन्याय से धन उत्पम न करना क्यों कि- जो अन्याय से धन उत्पन्न करते हैं वे सदा चारियों का पंक्ति में नहीं गिने जाते न वे धन्यबाद के पात्र ही हैं मित्रो ! अन्याय करने का फल कभी, भी अच्छा नहीं होता इसलिये अन्याय न करना चाहिये,
और क्षुद्र वृत्तिवाला पुरुष सभ्यता से गिर जाता है सदैव पिशुनता (चुगली) में ही लगा रहता है और धर्म कर्म से गिर जाता है उस लिए ! पहिला गुण यही है किअनुद्र होना । २ रूपवान्-जैसे कोकिला का स्वरूप है कुरूपों का विद्या रूप है उसी प्रकार मनुष्यों का शील रूप हैं जो पुरुष शोल से रष्ठित होता है वह शरीर के छन्दर होने पर भी असुन्दर ही गिना जाता है लोगों में माननीय नहीं रहता-यदि उसके पास धन भी है तो भी वह सभ्य पुरुषों में निंदनीय ही होता है जैसे-रावणअतिसुन्दर होने पर भी लोगों में उस की सुन्दरता नहीं गिनी जातो अपितु जिन पुरुषों ने अपने शोल को नहीं नोटा और प्रतिज्ञा में दृढ़ रहे हैं वे संसार की दृष्टि में पूजनीय हैं। अतएव ! सदाचारियों का रूपशील है यद्यपि की इन्द्रिय पूर्ण, शरीर निरोग्यता यहभी गुण रूपवान,