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जैनसम्प्रवामशिक्षा ||
इस्यादि, यह सन विवरण मन्भ के बह जाने के भय से यहां नहीं मिला है, दो खर का वो कुछ धप्पन आगे (पश्चमाध्याय में) मिला ही जायेगा पर सक्षेप से रोगपरीक्षा मोर उसके आवश्यक प्रकारों का कमन किया गया ||
मद तुम अध्याय का रोगपरीक्षामकार नामक भारदर्गा प्रकरण समाप्त हुआ ।
तेरहव प्रकरण - औषध प्रयोग |
औपधों का सग्रह ||
जंग में उत्पन्न हुई जो भनक वनस्पतियां बाजार में निकती हैं तथा अनेक दराने जो धातुओं के संसर्ग से तथा उन की भस्म से बनती है इन्हीं सर्मा का नाम भोपेष (दमा) है, परन्तु इस अन्य में जो २ वनस्पतियां संग्रहीत की गई है अथवा जिन २ ओपों का संग्रह किया गया है मे सब साधारण है, क्योंकि जिस भोपण के बनाने में बहुतज्ञान, तुराई, समय और धन की आवश्यकता है उस भोपण का शास्त्रोक (शास्त्र में कहा हुआ ) विधान और रस भावि विद्यशाळा के सिवाय अन्यत्र मभानस्थित ( ठीक २ ) मन सना असम्भव है, इस खिये जिन औपषों को साधारण वेष सभा गृहस्थ व बना सके अथवा भाजपर से मंगा पर उपयोग में सा सके उन्हीं भोपषों का संक्षेप से महा संग्रह किया गया है तथा कुछ साधारण भमेन्री भीपयों फ भी नुसले खिले है कि जिन का aa मा सर्वत्र किया जाता है ।
इन
में प्रथम कुछ शास्त्रोक मपधों का विधान छिस्से हैं
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अरिष्ठ भीर आसव-यानी फाड़ा अथवा पदके प्रवाही पदार्थ में औपप को पर उसे मिट्टी के बर्तन में मर के कपड़मिट्टी से उस बर्तन का मुँद बन्द कर एक मा यो पखवाड़े तक रखा रहने थे, जय उस में समीर पैदा हो जाये तब उसे काम में छाने, औषध को उमाले बिना रहने देने से भासैम तैयार होता है और उबाल कर तथा दूसरे भोपा को पीछे से डाल कर रस छोड़ते है वन भरि तैयार होता है ।
पनस्पतियों और भालुओं के लिये बने हुए परायों का समावेस भीषम माम में
१
जाता है
१ विधा महाँ वह स्थान यमाना चाहिये कि यहां मेचकविया का नियमानुसार प पान होता हो वा उपी के निगम के अनुसार पर
गिटीक १ तैयार की
हो व
-प्रमाण प्रचाराम भारि
भार