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पञ्चम अध्याय |
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गलत सिद्ध होती है, क्योंकि श्री हरिभद्र सूरि जी महाराज का स्वर्गवास विक्रम संवत् ५८५ ( पाच सौ पचासी ) में हुआ था और यह बात बहुत से ग्रन्थों से निर्भम सिद्ध हो चुकी है, इस के अतिरिक्त - उपाध्याय श्री समयसुन्दर जी महाराजकृत शत्रुजय रास में तथा श्री वीरविजय जी महाराज कृत ९९ प्रकार की पूजा में सोलह उद्धार शेत्रुञ्जय का वर्णन किया है, उस में विक्रम संवत् १०८ में तेरहवाँ उद्धार जावड़ नामक पोरवाल का लिखा है, इस से सिद्ध होता है कि विक्रम संवत् १०८ से पहिले ही किसी जैनाचार्य ने पोरवालों को प्रतिबोध देकर उक्त नगरी में उन्हें जैनी बनाया था ।
सूचना - इस पोरवाल वश में - विमलशाह, धनशाह, वस्तुपाल और तेजपाल आदि अनेक पुरुष धर्मज्ञ और अनर्गल लक्ष्मीवान् हो गये है, जिन का नाम इस ससार में स्वर्णाक्षरो ( सुनहरी अक्षरों ) में इतिहासों में सलिखित है, इन्ही का सक्षिप्त वर्णन पाठकों के ज्ञानार्थ हम यहाँ लिखते है:
पोरवाल ज्ञातिभूषण विमलशाह मन्त्री का वर्णन ॥
गुजेरात के महाराज भीमदेव ने विमलशाह को अपनी तरफ से अपना प्रधान अघिकारी अर्थात् दण्डपति नियत कर आबू पर भेजा था, यहाँ पर उक्त मन्त्री जी ने अपनी
१ - इन्हों ने मुल्क गोडवाड मे श्री आदिनाथ खामी का एक मनोहर मन्दिर बनवाया था ( जो कि सादरी से तीन कोश पर अभी राणकपुर नाम से प्रसिद्ध है), इस मन्दिर की उत्तमता यहाँ तक प्रसिद्ध है कि–रचना में इस के समान दूसरा मन्दिर नही माना जाता है, कहते हैं कि इस के बनवाने मे ९९ लाख स्वर्ण मोहर का खर्च हुआ था, यह बात श्री समयसुन्दर जी उपाध्याय ने लिखी है ॥
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२ - आबू और चन्द्रावती के राजकुटुम्वजन अणहिलवाडा पट्टन के महाराज के माण्डलिक थे, इन का इतिहास इस प्रकार है कि यह वश चालुक्य वश का था, इस वश मे नीचे लिखे हुए लोगों ने प्रकार राज्य किया था कि- मूलराज ने ईस्वी सन् ९४२ से ९९६ पर्यन्त, चामुण्ड ने ईस्वी सन् ९९६ से १०१० तक, वल्लभ ने ६ महीने तक, दुर्लभ ने ईस्वी सन् १०१० से १०२२ तक ( यह जैनधर्मी या ), भीमदेव ने ईस्वी सन् १०२२ से १०६२ तक, इस की बरकरारी मे धनराज आवू पर राज्य करता था तथा भीमदेव गुजरात देश पर राज्यशासन करता था, उस समय मालवे मे धारा नगर मे भोजराज गद्दी पर या, आबू के राजा धनराजने अणहिल पहन के राजवंश का पक्ष छोड कर राजा भोज का पक्ष किया था, इसी लिये भीमदेव ने अपनी तरफ से विमलशाह को अपना प्रवान अधिकारी अर्थात् दण्डपति नियत कर आवू पर भेजा था और उसी समय में विमलशाह ने श्री आदिनाथ का देवालय बनवाया था, भीमदेव ने धार पर भी आक्रमण किया था और इन्हीं की वरकरारी मे गजनी के महमूद ने सोमनाथ ( महादेव ) का मन्दिर लूटा था, इस के पीछे गुजरात का राज्य कर्ण ने ईस्वी सन् १०६३ से १०९३ तक किया, जयसिंह अथवा सिद्धराज ने ईखी सन् १०९३ से ११४३ तक राज्य किया ( यह जयसिंह चालुक्य वश एक वडा तेजस्वी और बुरन्धर पुरुष हो गया है), इस के पीछे कुमारपाल ने ईस्वी सन् ११४४ से
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११७३ तक राज्य किया (इस ने जैनाचार्य श्री हेमचन्द्र जी सूरि से जैन धर्म का ग्रहण किया था, उस