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बैनसम्प्रदायशिक्षा फरना हो उस समय उन छपों गोसियों में से किसी एक गोगी को मात्र मीपर रख लेना पाहिये, यदि बुद्रि में विचारा हुमा वमा गोली का रंग एक मिन बार व धान सेना पाहिये कि-उत्त्व मिझने लगा है।
२-भवा-किसी दूसरे पुरुष से कहना चाहिये कि-तुम किसी रग का विचार हो, चन या पुरुष अपने मन में किसी रंग का विचार कर के उस समय अपने माफ सर में तत्व को देखना चाहिये तमामपने उत्त्व को विरार पर उस पुरुष के विचार हुए रंग को मतगना पाहिये कि सुमने अमुफ फलाने ) रंग का विचार पिया मा, भाव उस पुरुप का विचारा हुभा रंग ठीक मिठ बावे तो भान ना पाहिमे कि-तत्व मिम्वा है।
३-मयमा काम अर्थात् वर्पम को अपने ओप्पो (होठों ) के पास उगा कर उस के उपर बलपूर्वक नाक का भासरना चाहिये, ऐसा करने से उस पंप पर बेस भाार पपिए हो गाये उसी भाभर को पहिसे पिसे हुए तत्तों के मानर से मिमना पाहिये, निस प्रत्व के भाकार से यह भाकार मिल मावे उस समय वही तत्त्व समप्रना चाहिये।
१-भयना-दोनों माटों से दोनों कानों को, दोनों तर्जनी अहरियों से दोनों माता को भौर दोनों मप्पमा मारियों से नासिका के दोनों सियों को बन्द कर के लोर दाना भमामि तमा दोनों कनिष्ठिा मारियों से (पारो पालियों से) भोमे को मर मी से सूब वापसे, यह कार्य करके पाम पिस से गुरु की पनाई हुई रीति समा को अकुटी में हे पाये, उस जगा पैसा और मिस रंग का बिन्दु मासूम पर पा सत्त्व मानना चाहिये।
५-ऊपर भी ई रीतियों से मनुष्य को कुछ दिन व तत्वों न सापन करा पाहिये, क्योंकि इस दिन के सम्मास से मनुष्य ने पत्तों का ज्ञान हाने म्गता. पौर सलों का शान होने से वा पुरुष प्रार्य मौर शुमाशुम भावि होने या भाषा को धीम ही मान सकता है।
स्वरों में उदित हुए तत्वों के द्वारा वर्षफल जानने की रीति ।। ममी कह चुके हैं कि-पौधों तलों का धान हो जाने से मनुष्य होने वार शुभाशुभ आदि समकायों को जान सकता है, इसी नियम अनुसार बह उछ पाँचौ उता के द्वारा वर्ष में होने वाले शुभाशुम फर को भी मान सकता है, उसके मानने से निमगिसिस रीतियों -
१-जिस समय मे की संक्रान्सि सगे उस समय भास को टकरा कर लर में कम पाने सस्त को देखना चाहिये, यदि पन्द्र स्वर में प्रयिमी वम पन्ना हो तो बान