Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 05
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shivprasad Amarnath Jain

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Page 783
________________ पञ्चम अध्याय ॥ ७४९ वृद्धि, प्रजा से लाभ तथा वस्त्रलाभ आदि का विचार करता है; सो तू कुलदेव तथा गुरु का भाक्क कर, ऐसा करने से तुझ को अच्छा लाभ होगा, इस बात का यह पुरावा है कि-तू खम्म में गाय को देखेगा। __३३२-हे पूछने वाले ! तुझ को तकलीफ है, तेरे भाई और मित्र भी तुझ से बदल कर चल रहे है तथा जो तू अपने मन में विचार करता है उस तरफ से तुझे लाभ का होना नहीं दीखता है, इस लिये तू देशान्तर (दूसरे देश) को चला जा, वहाँ तुझे लाम होगा, तू आम वात में पराये धन से वर्ताव करता है, इस बात की सत्यता का यह प्रमाण है कि- तू स्वप्न में भाई तथा मित्रों को देखेगा । ३३३-हे पूछने वाले ! तू अपने मन के विचारे हुए फल को पावेगा, तुझे व्यवहार की तथा भाई और मित्रो की चिन्ता है, सो ये सब तेरे विचारे हुए काम सिद्ध होगे। ____३३४-हे पूछने वाले । तू चिन्ता को मत कर, तेरी अच्छे आदमी से मुलाकात होगी, अब तेरे सब दुःख का नाश हुआ, तेरे विचारे हुए सब काम सफल होंगे। .३४१ हे पूछने वाले । तेरे मन में किसी पराये आदमी से प्रीति करने की इच्छा है सो तेरे लिये अच्छा होगा, तू घबड़ा मत, तुझे सुख होगा, धन का लाभ होगा तथा अच्छे आदमी से मुलाकात होगी । ___३४२-हे पूछने वाले ! तेरे मन में पराये आदमी से मुलाकात करने की चिन्ता है, तेरे ठिकान की वृद्धि होगी, कल्याण होगा, प्रजा की वृद्धि तथा आरोग्यता होगी, इस बात का यह पुरावा है कि-तू खप्न में वृक्ष को देखेगा। ___३४३-हे पूछने वाले ! तुझे वैरी की अथवा जिस किसी ने तेरे साथ विश्वासघात (दगाबाजी) किया है उस की चिन्ता है, सो इस शकुन से ऐसा मालूम होता है कितेरे बहुत दिन क्लेश में बीतेंगे और तेरी जो चीज़ चली गई है वह पीछे नहीं आवेगी परन्तु कुछ दिन पीछे तेरा कल्याण होगा। ___३४४-हे पूछने वाले ! तेरे सब काम अच्छे है, तुझे शीघ्र ही मनोवाञ्छित (मन चाहा) फल मिलेगा, तुझे जो व्यापार की तथा भाई वन्धुओ की चिन्ता है वह सब मिट जावंगी, इस बात का यह पुरावा है कि-तेरे शिर में घाव का चिह्न है, त उद्यम कर अवश्य लाभ होगा। ४११-हे पूछने वाले ! तेरे धन की हानि, शरीर में रोग और चित्त की चञ्चलता. ये वात सात वर्ष से हो रही हैं, जो काम तू ने अब तक किया है उस में नुकसान होता रहा है परन्तु अब तु खुश हो, क्योंकि अब तेरी तकलीफ चली गई, तु अब चिन्ता मत करः क्योंकि-अब कल्याण होगा, वन धान्य की जामद होगी तथा सुख होगा।

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