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पञ्चम अध्याय ॥
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योगसम्बन्धिनी मेस्मेरिजम विद्या का संक्षिप्त वर्णन ॥ वर्तमान समय में इस विद्या की चर्चा भी चारो ओर अधिक फैल रही है अर्थात् __ अग्रेजी शिक्षा पाये हुए मनुष्य इस विद्या पर तन मन से मोहित हो रहे है, इस का
यहाँ तक प्रचार बढ़ रहा है कि-पाठशालाओं (स्कूलों) के सब विद्यार्थी भी इस का नाम जानते है तथा इस पर यहॉ तक श्रद्धा बढ़ रही है कि हमारे जैन्टिलमैन भाई भी (जो कि सब बातों को व्यर्थ बतलाया करते है ) इस विद्या का सच्चे भाव से खीकार कर रहे है, इस का कारण केवल यही है कि-इस पर श्रद्धा रखने वाले जनो को बालकपन से ही इस प्रकार की शिक्षा मिली है और इस में सन्देह भी नहीं है कि-यह विद्या बहुत सच्ची और अत्यन्त लाभदायक है, परन्तु बात केवल इतनी है कि-यदि इस विद्या में सिद्धता को प्राप्त कर उसे यथोचित रीति से काम में लाया जावे तो वह बहुत लाभदायक हो सकती है। . इस विद्या का विशेष वर्णन हम यहां पर ग्रन्थ के विस्तार के भय से नहीं कर सकते है किन्तु केवल इस का स्वरूपमात्र पाठक जनों के ज्ञान के लिये लिखते है। __ निस्सन्देह यह विद्या बहुत प्राचीन है तथा योगाभ्यास की एक शाखा है, पूर्व समय में भारतवर्षीय सम्पूर्ण आचार्य और मुनि महात्मा जन योगाभ्यासी हुआ करते थे जिस का वृत्तान्त प्राचीन ग्रन्थो से तथा इतिहासों से विदित हो सकता है । __ आवश्यक सूचना-ससार में यह एक साधारण नियम देखा जाता है कि जब कभी कोई पुरुष किन्ही नूतन ( नये ) विचारों को सर्व साधारण के समक्ष में प्रचरित करने का प्रारम्भ करता है तब लोग पहिले उस का उपहास किया करते हैं, तात्पर्य यह है कि-जब कोई पुरुष ( चाहे वह कैसा ही विद्वान् क्यों न हो) किन्हीं नये विचारों को (संसार के लिये लाभदायक होने पर भी ) प्रकट करता है तब एक वार लोग उस का उपहास अवश्य ही करते है तथा उस के उन विचारो को बाललीला समझते है. परन्त विचारप्रकटकर्ता ( विचारो को प्रकट करने वाला ) गम्भीर पुरुप जव लोगो के उपहास का कुछ भी विचार न कर अपने कर्तव्य में सोद्योग ( उद्योगयुक्त ) ही रहता है तब उस का परिणाम यह होता है कि उन विचारो में जो कुछ सत्यता विद्यमान होती है वह शनै. २ ( धीरे २ ) कालान्तर में ( कुछ काल के पश्चात् ) प्रचार को प्राप्त होती है अर्थात् उन विचारों की सत्यता और असलियत को लोग समझ कर मानने लगते है,
१-यह विद्या भी खरोदयविद्या से विपयसाम्य से सम्बध रखती है, अत यहाँ पर थोडा सा इस का भी खरूप दिखलाया जाता है ॥
२-इतने ही आवश्यक विषयों के वर्णन से ग्रन्थ अव तक बढ़ चुका है तथा आगे भी कुछ आवश्यक विपय का वर्णन करना अवशिष्ट है, अत इस (मेस्मेरिजम) विद्या के खरूपमात्र का वर्णन किया है ॥