________________
७०५
पञ्चम अध्याय ॥
नवाँ प्रकरण-ज्योतिर्विषयवर्णन ॥
ज्योतिपशास्त्र का संक्षिप्त वर्णन ॥ ज्योतिःशास्त्र का शब्दार्थ ग्रहों की विद्या है, इस में ग्रहों की गति और उन के परस्पर के सम्बंध को देख कर भविष्य ( होने वाली ) वार्त्ताओं के जानने के नियमों का वर्णन किया गया है, वास्तव में यह विद्या भी एक दिव्य चक्षुरूप है, क्योंकि-इस विद्या के ज्ञान से आगे होने वाली बातों को मनुष्य अच्छे प्रकार से जान सकता है, इस विद्या के अनुसार जन्मपत्रिकायें भी बनती है जिन से अच्छे वा बुरे कर्मों का फल ठीक रीति से मालूम हो सकता है, परन्तु वात केवल इतनी है कि-जन्मसमय का लग्न ठीक होना चाहिये, वर्तमान में अन्य विद्याओं के समान इस विद्या की भी न्यूनता अन्य देशों की अपेक्षा मारवाड़ तथा गोढ़वाड आदि विद्याशून्य देशो में अधिक देखी जाती है, तात्पर्य यह है कि-विद्यारहित तथा अपनी २ यजमानी में उदरपूर्ति (पेटभराई ) करने वाले ज्योतिषी लोगों को यदि कोई देखना चाहे तो उक्त देशों में देख सकता है, इस लेख से पाठकवृन्द यह न समझें कि-उक्त देशों में ज्योतिप् विद्या के जानकर पण्डित बिलकुल नहीं है क्योंकि उक्त देशों में भी मुख्य २ राजधानी तथा नगरों में यतिसम्प्रदाय में तथा ब्राह्मण लोगों में कही २ अच्छे २ ज्योतिषी देखे जाते है, परन्तु अधिकतर तो ऊपर लिखे अनुसार ही उक्त देशो में ज्योतिषी देखने में आते है, इसी लिये कहा जाता है कि-उक्त देशों में अन्य विद्याओं के समान इस विद्या की भी अत्यन्त न्यूनता है। ___ इस विद्या को साधारणतया जानने की इच्छा रखने वालों को उचित है कि वे प्रथम तिथि, वार, नक्षत्र, योग और कर्ण आदि बातों को कण्ठस्थ कर लेवें, क्योकि ऐसा करने से उन को इस विद्या में आगे बढ़ने में सुगमता पड़ेगी, इस विद्या का काम प्रत्येक गृहस्थ को प्रायः पड़ता ही रहता है, इस लिये गृहस्थ लोगों को भी उचित है कि-कार्ययोग्य ( काम के लायक ) इस विद्या को भी अवश्य प्राप्त कर लें कि जिस से वे इस विद्या के द्वारा अपने कार्यों के शुभाशुभ फल को विचार कर उन में प्रवृत्त हो कर सख का सम्पादन करें।
१-देखो ! जोधपुर राजधानी में ज्योतिष विद्या, जैनागम, मन्त्रादि जैनाम्नाय तथा सुभाषितादि विषय के पूर्ण ज्ञाता महोपाध्याय श्री जुहारमल जी गणी वर्तमान में ८० वर्ष की अवस्था के अच्छे विद्वान के पास वहत से ब्राह्मणों के पुत्र ज्योति विद्या को पठ कर निपुण हुए हैं तथा जोधपुर राज्य में पूर्व समय में ब्राह्मण लोगों में चण्ड जी नामक अच्छे ज्योतिषी हो चुके हैं, इन्हीं के नाम से एक पञ्चाङ्ग निकलता है जिस का वर्तमान में बहुत प्रचार है, इन की सन्तति में भी अच्छे २ विद्वान् तथा ज्योतिषी देखे जाते हैं।