________________
पञ्चम अध्याय ॥
७१९ राज्य के उपरान्त जितने घण्टे और मिनट हुए हों उन के दण्ड और पलों को राज्य में जोड देने से सूर्योदय तक का इष्ट बन जावेगा ॥
दूसरी विधि-सूर्योदय के उपरान्त तथा दो प्रहर के भीतर की घटी और पलों को दिनार्ध में घटा देने से इष्ट बन जाता है, अथवा सूर्योदय से लेकर जितना समय व्यतीत हुआ हो उस की घटी और पल बना कर मध्याहोत्तर तथा अर्ध रात्रि के भीतर तक का जितना समय हो उसे दिनार्ध में जोड़ देने से मध्य रात्रि तक का इष्ट बन जावेगा, अथवा सूर्योदय के अनन्तर जितने घण्टे व्यतीत हुए हों उन की घटी और पल बना कर उन्हें ६० में से घटा देने से इष्ट बन जाता है, दिनार्ध के ऊपर के जितने घण्टे व्यतीत हुए हों उन की घटी और पल बना कर उन्हें रानी में घटा देने से राज्य के भीतर का इष्टकाल बन जाता है |
लग्न जानने की रीति ॥ जिस समय का लग्न बनाना हो उस समय का प्रथम तो ऊपर लिखी हुई क्रिया से इष्ट बनाओ, फिर-उस दिन की वर्तमान सक्रान्ति के जितने अंश गये हों उन को पञ्चाङ्ग में देख कर लमसारणी में उन्हीं अशों की पति में उस सङ्क्रान्ति वाले कोष्ठ की पति के बराबर ( सामने ) जो कोष्ठ हो उस कोष्ठ के अङ्कों को इष्ट में जोड़ दो और उस सारणी में फिर देखो जहाँ तुम्हारे जोड़े हुए अंक मिले वही लग्न उस समय का जानो, परन्तु स्मरण रखना चाहिये कि-यदि तुम्हारे जोड़े हुए अङ्क साठ से ऊपर ( अधिक ) हो तो ऊपर के अङ्कों को ( साठ को निकाल कर शेष अङ्कों को ) कायम रक्यो अर्थात् उन अङ्कों में से साठ को निकाल डालो फिर ऊपर के जो अङ्क हों उन को सारणी में देखो, जिस राशि की पति में वे अङ्क मिलें उतने ही अंश पर उसी लग्न को समझो॥
कतिपय महजनों की जन्मकुंडलियाँ अब कतिपय महज्जनों की जन्मकुण्डलियाँ लिखी जाती हैं-जिन की ग्रहविशेषस्थिति को देख कर विद्वज्जन ग्रहविशेषजन्य फल का अनुभव कर सकेंगेःतीर्थकर श्री महावीर स्वामी की जन्मकुण्डली॥ श्री रामचन्द्र जी महाराज की जन्मकुण्डली॥
|| १२१. के म60 १ सूबु ७ श
(४ रा वृर
७ शनि ४१ सू वु १. म. र १२२
११
-