Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 05
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shivprasad Amarnath Jain

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Page 752
________________ कर पटी और और रात्रिमान का आधा सात नितीन नैनसम्मवासिया॥ सूर्योदय काल के जानने की विधि ॥ १२ में से सूर्यास्तकास के पण्टों और मिनटों को पटा देने से सूदियकाल बन आता है, जैसे-१२ में से ६।१९ को पटामा सो ५।२१ शेप रहे मर्षात् ५ प , ११ मिनट पर सूदिमकाल ठहरा, एवं सूर्यादयकाल के पण्टो भौर मिनटों को दूना पर पटी और पत बनाये तो २८।२५ हुए, मस यही रात्रिमान है, दिनमान का मापा विनार्ष और रात्रिमान का आपा रात्रिमानाप ( राम्य ) होता है तथा दिनमान में रात्रिमानार्म को घोड़ने से रापर्प मर्यात् नितीमसमम होता है, जैसे-१५५१७३० दिना है तथा ११११२३० रात्रिमाना, इस रात्रिमानार्म को (११११२।३० को) दिनमान में बोडारापर्म अर्मात् निधीमा १५१९७२. हुमा । दूसरी क्रिया--१० में से दिनमान को पटा देने से राभिमान बनता है, विन मान में ५ भाग देने से सूर्यास्तकास के पष्टे और मिनट निकमते हैं उभा रातिमान में ५ का भाग देने से सूर्योदयानल मनसा है, जैसे-३११३५ में ५ का भाग रिस तो ६ सम्म हुए, क्षेप बचे हुए एक को ६० से गुमा फर उस में ३५ मोरे तया ५ का माग दिया तो १९ उन्म हुए, बस मही सूर्यास्तकाल हुभा अर्थात् ६।१९ बाख काम सरा, ६० में से दिनमान २१५ को घटामो तो २८।२५ रात्रिमान रहा, त में ५का माग दिया तो ५११ हुप, बस यही सूयिकास बन गया । इष्टकाल विरचन ॥ यदि सूर्यावयकाल से दो पहर के भीतर तक इएकाठ बनाना हो तो सूर्योदयकार को इएसमय के पण्टो भौर मिनटों में से पटा कर दण और पठ कर छो तो मध्यात के भीतर तक का इसफा बन जायेगा, मैसे-पासना करो कि-सोदय फार ६ पर के ७ मिनट तमा १९ सेमिण पर है तो इप्टसमय १० पम के ११ मिनट मा २० सेकिण पर हुमा, क्योंकि भन्सर करने से श१८ घटी भौर पर मादि १०८ १० हुए, बस यही इएका हुमा, इसी प्रकार मध्याह के उपर मिसने घण्टे ध्याद ७५ हो उन की पटी मावि को दिनार्प में मोर देने से दो पहर के ऊपर का एका सूया वय से बन जायेगा। __ सूर्यास्त के पाटे मौर मिनट के उपरान्त तिने पण्टे आदि स्पटीत हुए हो उन का पटी भौर पर मावि को दिनमान में मोर देने से राप्रर्ष तक का फास पन मायेमा । -मरण हे - पपेमबादी म मोरान (नस्तोता . पाने में रीति इस प्रपर आमासमी पाईपे- ५ देखो। मैं पे पाप ये २१ ॥ २५ परमापात ५२ सर मी बर्षात एच में से १५सन सताने २९ से एक नियम मार्फत प्रेमा १८ रक्या वषा सप विषए एक पत्र मा छे . सम ऐ२५ निमम (मयमा ) मे १५पचे पद से॥५ो घमने से १९५०

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