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पञ्चम अध्याय ॥
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हैं जिस का अन्तिम परिणाम ( आखिरी नतीजा ) विनाश के सिवाय और कुछ भी
नहीं होता है। ___ भला सोचने की बात है कि जिस राज्य में हम सुख और शान्तिपूर्वक निर्भय होकर अपनी जीवन यात्रा को व्यतीत कर रहे हों उस राज्य के नियत किये हुए नियमों का पालन न करना तथा उस में खामिभक्ति का न दिखलाना हमारी कृतघ्नता नहीं तो
और क्या है? ___ सोचिये तो सही कि-यदि हम सब पर सुयोग्य राज्यशासनपूर्वक क्षत्रच्छाया न
हो तो क्या कभी सम्भव है कि इस ससार में एक दिन भी सुखपूर्वक हम अपना नि__ वोह कर सकें, कभी नहीं, देखिये ! राज्य तथा उस के शासनकर्ता जन अपने ऊपर कि
तनी कठिन से कठिन आपत्तियों का सहन करते है परन्तु अपने अधीनस्थ प्रजाजनों पर तनिक भी ऑच नही आने देते हैं अर्थात् उन आई हुई आपत्तियों का ज़रा भी असर यथाशक्य नहीं पड़ने देते हैं, बस इसी लिये प्रजाजन निर्भय हो कर अपने जीवन को व्यतीत किया करते है।
सारांश यही है कि राज्यशासन के विना किसी दशा में किसी प्रकार से कभी किसी का सुखपूर्वक निर्वाह होना असम्भव है, जब यह व्यवस्था है तो क्या प्रत्येक पुरुष का
१-यदि इस के उदाहरणों के जानने की इच्छा हो तो इतिहासवेत्ताओं से पूछिये ॥
२-कृतघ्न की कभी शुभ गति नहीं होती है, जैसा कि-धर्मशास्त्र में कहा है कि-मित्रद्वह कृतनस्य, खानस्य गुरुघातिन ॥ चतुर्णा वयमेतेषा, निष्कृतिं नानुशुश्रुम ॥ १॥ अर्थात् मित्र से द्रोह करने वाले, कृतान (उपकार को न मानने वाले ), स्त्रीहत्या करने वाले तथा गुरुघाती, इन चारों की निष्कृति (उद्धार वा मोक्ष ) को हम ने नहीं सुना है ॥१॥ तात्पर्य यह है कि उक्त चारों पापियों की कभी शुभ गति नहीं होती है ॥
३-यदि राज्यशासनपूर्वक क्षत्रच्छाया न हो तो एक दूसरे का प्राणघातक हो जावे, प्रत्येक पुरुष के सब व्यवहार उच्छिन्न ( नष्ट ) हो जावें और कोई भी सुखपूर्वक अपना पेट तक न भर पावे, परन्तु जव राज्यशासनपूर्वक क्षत्रच्छाया होती है अर्थात् शस्त्रविद्याविशारद राज्यशासक जव स्वाधीन प्रजा की रक्षा करते हुए सव आपत्तियों को अपने ऊपर झेलते हैं तव साधारण प्रजाजनों को यह भी ज्ञात नहीं होता है कि-क्रिधर क्या हो रहा है अर्थात् सव निर्भय हो कर अपने २ कार्यों में लगे रहते हैं, सत्य है कि-"शस्त्रेण रक्षिते राष्ट्रे, शास्त्रचिन्ता प्रवर्तते” अर्थात् शत्र के द्वारा राज्य की रक्षा होने पर शास्त्रचिन्तन आदि सव कार्य होते हैं।
४-ऐसी दशा में विचारशील दूरदर्शी जन अपने कर्तव्यों का पालन किया करते हैं परन्तु अज्ञान जन पैर पसार कर नींद लिया करते हैं।
५-राज्यशासन चाहे पञ्चायती हो चाहे आधिराजिक हो किन्तु उस का होना आवश्यक है ॥