Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 05
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shivprasad Amarnath Jain

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Page 736
________________ जनसम्प्रदायशिक्षा || यह कन्य नहीं है कि-वद सधी राजमक्ति को अपने हृदय में स्थान दे कर स्वामिभकि का परिचय देखा तुमा राज्य नियमों के अनुकूल सर्वदा अपना निवाह करे । ७०४ वद्यमान समय में हम सब प्रजाजन उस श्रीमती न्यायचीला बुटि गवर्नमेण्ट के अभिशासन में है कि - जिस के न्याय, दया, सोमन्य, परोपकार, विद्योद्यति और सुखपचार मावि गुणों का वर्णन करने में चिड्डा और लेखनी दोनों ही असमर्थ हैं, इस किये ऊपर मिले अनुसार हम सब का परम फर्धम्य है कि-ठक्क गवर्नमेंट के स स्वामिमक्छ मन कर उस के निमत किये हुए सब नियमों को जान कर उन्हीं के अनुसार स वा वर्षाव करें कि जिस से हम सब की संसारमात्रा सुखपूर्वक व्यतीत होता ह सब पारलौकिक सुख के भी अधिकारी हों। सब ही जानते हैं कि-सची स्वामिभक्ति को हृदय में स्थान घेने का मुख्य हेतु प्रत्येक पुरुष का सद्भाव और उस का आत्मिक सद्विचार ही है, इस लिये इस विषय में हम केवल इस उपदेश के सिवाय और कुछ नहीं छिल सकते हैं कि ऐसा करना ( लामिम बनना ) सर्व साधारण का परम कर्तव्य है । स्मरण रहे कि राज्यमति का रखना तथा राज्यनियम के अनुसार बर्चान करना ( जो कि ऊपर खिले अनुसार मनुष्य का परम धर्म है ) सब ही बन सकता है फि मनुष्य राज्यनियम (कानून) को ठीक रीति से मानता हो, इस लिये उभित है कि वह अपने उक्त कम्य का पावन करने के किये राज्यनियम का विज्ञान फो मनुष्यमात्र ठीक रीति से प्राप्त करे । मध्यपि राज्पनियम का मिपम अत्यन्त गहन है इस किये सर्व साधारण राज्यनियम के सम अह को मम्मी भाँति नहीं मान सकते हैं तथापि प्रयम करने से इस (राम्म नियम ) की मुख्य २ और उपयोगी बासों का परिभ्रान सो सर्व साधारण को भी होना कोई कठिन मास नहीं है, इस बिये उपयोगी और मुख्य २ बातों को तो सर्व साधारण को अवश्य मानना चाहिये । यद्यपि हमारा विश्वार इस प्रकरण में राज्यनियम के कुछ आवश्यक विपयों के भी न करने का था परन्तु न्य के विस्तृत हो जाने के कारण उक विषय का वर्णन नहीं किया है, उक्त विषय को देखने की इच्छा रखनेवाले पुरुषों को सानीरायहिन्द म हिन्दुस्थान का दण्डर्स नामक मन्त्र ( जिस का कानून सा० १९६२ ई० से मब तक जारी है ) देखना चाहिये ॥ १ जनवरी सन् यह पास अध्याय का राजनियमवर्णन मामक भाठा मकरण समाप्त हुआ ||

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