Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 05
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shivprasad Amarnath Jain

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Page 740
________________ जैनसमवायश्चिक्षा || सात करणों के नाम ॥ अर्थात् यदि तिथि साठ १-मम । २-पालन । १- कौलव । ४-तैतिल । ५-गर। ६ - वणिय । भौर ७ वि सूचना – तिथि की सम्पूर्ण घड़ियों में दो करण भोगते हैं पड़ी की हो तो एक करण दिन में तथा दूसरा करण रात्रि में पक्ष की पड़िया की तमाम घड़ियों के दूसरे भाप भाग से भय और भाव समा कृष्ण पक्ष की सुर्वी की पट्टियों के दूसरे आधे भाग से सदा स्थिर है, जैसे देखो ! मतुर्दशी के दूसरे भाग में कुनि, अमावास्या के पहिले भाग में चतु प्पद, दूसरे भाग में माग और पड़िया के पहिले भाग में किस्तुम, मे ही चार सिर करण कहते हैं | श्रीतता है, परन्तु शुक्र आदि या है करण भाठे ७०८ तिथि प्रथम भाग १ किंस्तुन २ 建 ४ ५ १० ११ शुक्ल पक्ष (सुदि ) के करण ॥ द्वितीय भाग १५ पूर्णिमा मास्य सैविक पणिय बग गर विष्टि बालप सैविर गणिय १२ मय १५ १४ कौन करणों के बीतने का स्पष्ट विवरण || कृष्ण पक्ष ( मवि) के सिभि प्रथम माग १ पाठव वैतिर वणिय गर विडि मव कौलव गर विष्टि याकंन वैखिक पणिय बय कौलव गर विष्टि नाण्य वैविक मणिब गय ४ ७ ८ ܘܐ ११ १२ १३ १४ ३० अमावस बव फोम्ब गर विधि मासम ਰੈਣ गणिय भग कौम्य गर विष्ठि भूवष्यव करण है। द्वितीय भाग क्रोम्य गर विष्टि बालय वैविक बञि भव कौकब गर विष्टि बालप ਰੈਲ गणिन शकुनि नाग शुभ कार्यों में निषिद्ध तिथि आदि का वर्णन || जिस तिथि की वृद्धि हो वह तिथि, जिस तिथि का हो वह विषि, परिष योग

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