Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 05
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shivprasad Amarnath Jain

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Page 744
________________ चैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ रवि अमृत हाम दिन का चौघड़िया ॥ सोम मङ्गल बुप गुरु शुरु पनि उद्वेग ममत रोग गम शुभ पल काठ पल फाक उद्वेग रोग हाम शुम पल काल उद्वेग अमृत रोग भमत रोग साम शुम पळ काम उद्वेग उद्वेग ममृत रोग लाम शुम । गुम चरमास उद्वेग भमृत रोग मम रोग छाम शुम पर कास उद्वेग ममत वेग ममृत रोग ठाम शुम पर काह विज्ञान-उमर के कोष्ठ से या समझना चाहिये कि-मिस दिन यो गार हो उस दिन उसी पार के नीचे सिसा हुमा पौपरिया सूर्योदय के समय में पैठता है वा परिम समझना चाहिये, पीछे उसके उतरने के बाद उस पार से छठे वार का पोपरिण पेठता है यह दूसरा समझना पाहिये, पीछे उस के उतरने के बाद उस (छठे ) मार से छठे वार का पौषत्रिया पैठता है, यही क्रम भागे भी समझना चाहिये, जैसे देखा। रविवार के दिन पहिल नवेग नामक पौषरिया है उसके उतरने के पीछे रवि से ठे शुक्र का पठ नामक चौपड़िया बैठता है, इसी मनुक्रम से प्रत्येक बार के दिन मर पोपरिया मान भेना पाहिये, एक पौषडिया रेड पण्टे तक रहता है अर्थात् सबेरे । गने से लेकर शाम के छ पने एक बारह पण्टे में माठ पौपरिये व्यतीत होते हैं, इन में से-अमृत, शुमकाम मौर पर, ये पार पौपरिये उधम तमा उठेगा रोग मौर काय, ये तीन चौपहिये निकर है, इस लिये भच्छे चौपड़ियों में शुम काम को करना चाहिये । __ रात्रि का चौघडिया ॥ रवि सोम मत तुप गुरु शुक्र शुभ पर पास वेग अमृत रोग लाम भमूत रोग मम शुम पस कार देग उद्वेग गाम गुम उद्वेग काम उद्वेग ममृत रोग पल पम रोग उद्वेग माभ काठ गुभ पर प्रत उद्वेग अमृत रोग मम शनि ममत तमम शुम काठ भमत साम गुम ताम गुम भमृत देग गुभ ममृत रोय

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