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पञ्चम अध्याय ॥
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इस सभास्थापन के समय में जिस २ नगर के तथा जिस २ जाति के वैश्य प्रतिनिधि आये थे उन का नाम चौरासी न्यातो के वर्णन में लिखा हुआ समझ लेना चाहिये, अर्थात् चौरासी नगरों के प्रतिनिधि यहाँ आये थे, उसी दिन से उन की चौरासी न्यातें भी कहलाती है, पीछे देशप्रथा से उन में अन्य २ भी नाम शामिल होते गये है, जो कि पूर्व दो कोष्ठो में लिखे जा चुके है ।
अर्थात् हिन्दुस्थान की गाँवों की पञ्चायतें विना राजा के छोटे २ राज्य है, जिन में लोगों की रक्षा के लिये प्राय सभी वस्तुये है, जहां अन्य सभी विषय विगडते दिखाई देते है तहाँ ये पञ्चायत चिरस्थायी दिसाई पडती है, एक राजवंश के पीछे दूसरे राजवंश का नाश हो रहा है, राज्य में एक गडवडी के पीछे दूसरी गडवडी खडी हो रही है, कभी हिन्दू, कभी पठान, कभी मुगल, कभी मरहठा, कभी सिख, कभी अग्रेज, एक के पीछे दूसरे राज्य के अधिकारी वन रहे है किंतु ग्रामों की पश्चागतें सदैव वनी हुई है, ये ग्रामों की पश्चायते जिन में से हर एक अलग २ छोटी २ रियासत सी मुझे जँच रही है सब से वढ कर हिन्दुस्थानवासियों की रक्षा करने वाली है, ये ही ग्रामों की पचायतें सभी गडवडियों से राज्येश्वरों के सभी अदल बदलों से देश के तहस नहस होते रहने पर भी प्रजा को सब दुखों से बचा रही हैं, इन्हीं गाँवों की पश्चायतों के स्थिर रहने से प्रजा के सुख खच्छन्दता में वाधा नहीं पढ रही है तथा वह खाधीनता का सुख भोगने को समर्थ हो रही है ।
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अग्रेज ऐतिहासिक एलफिनस्टन साहव और सर चार्ल्स मेटकाफ महाशय ने जिन गाँवों की पञ्चायतों को हिन्दुस्थानवासियों की सब विपदो से रक्षा का कारण जाना था, जिन को उन्हों ने हिन्दुस्थान की प्रजा के सुख और स्वच्छन्दता का एक मात्र कारण निश्चय किया था वे अब कहाँ हैं ? सन् १८३० ईवी में भी जो गॉवों की पश्चायतें हिन्दुस्थानवासियों की लौकिक और पारलौकिक स्थिति में कुछ भी ऑच आने नहीं देती थीं वे अव क्या हो गई ? एक उन्हीं पञ्चायतों का नाश हो जाने से ही आज दिन भारतवासियों का सर्वनाश हो रहा है, घोर राष्ट्रविप्लवों के समय में भी जिन पञ्चायतों ने भारतवासियों के सर्वस्व की रक्षा की थी उन के विना इन दिनों अग्रेजी राज्य में भारत की राष्ट्रसम्वन्धी सभी अशान्तियों के मिट जाने पर भी हमारी दशा दिन प्रतिदिन बदलती हुई, मरती हुई जाति की घोर शोचनीय दशा यन रही है, शोचने से भी शरीर रोमाश्चित होता है कि - सन् १८५७ देखी के गदर के पश्चात् जय से स्वर्गीया महाराणी विक्टोरिया ने भारतवर्ष को अपनी रियासत की शान्तिमयी छत्रछाया मे मिला लिया तव से प्रथम २५ वर्षों मे ५० लाख भारतवासी अन्न विना तडफते हुए मृत्युलोक में पहुँच गये तथा दूसरे २५ वर्षों मे २ करोड साठ लाख भारतवासी भूख के हाहाकार से ससार भर को गुँजा कर अपने जीवित भाइयों को समझा गये कि गाँवों की उन छोटी २ पश्चायतों के विसर्जन से भारत की दुर्गति कैसी भयानक हुई है, अन्य दुर्गतियों की आलोचना करने से हृदयवालों की वाक्यशक्ति तक हर जाती है ।
गाँवों की वे पञ्चायते कैसे मिट गई, सो कह कर आज शक्तिमान् पुरुषों का अप्रियभाजन होना नहीं है, वे पश्चायते क्या थीं सो भी आज पूरा २ लिखने का सुभीता नहीं है, भारतवासियों को सव विपदों से रक्षा करने वाली वे पञ्चायतें मानो एक एक बडी गृहस्थी थीं, एक गृहस्थी के सब समर्थ लोग जिस प्रकार अपने अधीनस्थ परिवारों के पालन पोषण तथा विपदों से तारने के लिये उद्यम और प्रयत्न करते