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पञ्चम अध्याय ॥
६९७ से सभा को स्थापित करने वाला तो सर्वथा ही आदरणीय होता है इस लिये उक्त सच्चे वीर पुत्र को यदि सहस्रों धन्यवाद दिये जावें तो भी कम हैं, परन्तु बुद्धिमान् समझ सकते हैं कि-ऐसे बृहत् कार्य में अकेला पुरुष चाहे वह कैसा ही उत्साही और वीर क्यों न हो क्या कर सकता है ? अर्थात् उसे दूसरों का आश्रय ढूँढ़ना ही पड़ता है, बस इसी नियम के अनुसार वह बालिका सभा कतिपय मिथ्याभिमानी पुरुषों को रक्षा के उद्देश्य से सौपी गई अर्थात् प्रथम कान्फ्रेंस फलोधी में हो कर दूसरी बम्बई में हुई, उस के कार्यवाहक प्राय प्रथम तो गुजराती जन हुए, इस पर भी "काल में अधिक मास" वाली कहावत चरितार्थ हुई अर्थात् उन को कुगुरुओं ने शुद्ध मार्ग से हटा कर विपरीत मार्ग पर चला दिया, इस का परिणाम यह हुआ कि वे अपने नित्य के पाठ करने के भी परमात्मा वीर के इस उपदेश को कि-"मित्ती मे सब्ब भूएसु बेर मज्झ न केण इ" अर्थात् मेरी सर्व भूतों के साथ मैत्री है, किसी के साथ मेरा वैर ( शत्रुता ) नहीं है, मिथ्याभिमानी और कुगुरुओं के विपरीत मार्ग पर चला देने से भूल गये', वा यों कहिये किबम्बई में जब दूसरी कान्फ्रेंस हुई उस समय एक वर्ष की बालिका सभा की वर्षगाँठ के महोत्सव पर श्री महावीर खामी के उक्त वचन को उन्हों ने एकदम तिलाञ्जलि दे दी , यद्यपि ऊपर से तो एकता २ पुकारते रहे परन्तु उन का भीतरी हाल जो कुछ था वा उस का प्रभाव अब तक जो कुछ है उस का लिखना अनावश्यक है, फिर उस का फल तो वही हुआ जो कुछ होना चाहिये था, सत्य है कि-"अवसर चूकी डूमणी, गावे आल पपाल" प्रिय वाचकवृन्द! इस बात को आप जानते ही हैं कि-एक नगर से दूसरे नगर को जाते समय यदि कोई शुद्ध मार्ग को भूल कर उजाड़ जंगल में चला जावे तो वह फिर शुद्ध मार्ग पर तब ही आ सकता है जब कि कोई उसे कुमार्ग से हटा कर शुद्ध मार्ग को दिखला देवे, इसी नियम से हम कह सकते है कि-सभा के कार्यकर्ता भी अब सत्पथ पर तब ही आ सकते हैं जब कि कोई उन्हें सत्पथ को दिखला देवे, चूकि सत्पथ का दिखलाने वाला केवल महज्जनोपदेश ( महात्माओं का उपदेश ) ही हो सकता है इस लिये यदि सभा के कार्यकर्ताओं को जीवनरूपी रगशाला में शुद्ध भाव से कुछ करने की अमिलापा हो तो उन्हें परमात्मा के उक्त वाय को हृदय में स्थान दे कर
१-शुद्ध मार्ग पर जाते हुए पुरुप को विपरीत मार्ग पर चला देने वाले को ही वास्तव में कुगुरु समझ ना चाहिये, यह सव ही प्रन्यों का एक मत है ॥
२-हमारा यह कथन कहाँ तक सत्य है, इस का विचार उक्त सभा के मर्म को जानने वाले बुद्धिमान ही कर सकते हैं। ___३-इस विषय को लेख के बढ जाने के कारण यहाँ पर नहीं लिख सकते हैं, फिर किसी समय पाठको की सेवा मे यह विषय उपस्थित किया जावेगा ॥ ___४-इस कथन के आशय को सूक्ष्म बुद्धि वाले पुरुष ही समझ सकते है किन्तु स्थूल वुद्धि वाले नहीं समझ सकते हैं।