Book Title: Jain Dharm Shikshavali Part 05
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Shivprasad Amarnath Jain

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Page 727
________________ पञ्चम अध्याय ॥ ६९५ (वड़प्पन की अभिलापा ) आप ही चला जाता है, देखो! वर्तमान में दादाभाई नौरोजी, लाला लाजपतराय और बाल गङ्गाधर तिलक आदि सद्गुणी पुरुषों को जो तमाम आर्यावर्त देश मान दे रहा है वह उन की लघुता ( नम्रता ) से प्राप्त हुए देशभक्ति आदि गुणों से ही प्राप्त हुआ समझना चाहिये। ___ इस विषय में विशेष क्या लिखें क्योंकि प्राज्ञों ( बुद्धिमानों ) के लिये थोडा ही लिखना पर्याप्त ( काफी ) होता है, अन्त में हमारी समस्त वैश्य ( महेश्वरी तथा ओसवाल आदि ) सज्जनों से सविनय प्रार्थना है कि जिस प्रकार आप के पूर्वज लोग एकत्रित हो कर एक दूसरे के साथ एकता और सहानुभूति का वर्ताव कर उन्नति के शिखर पर विराजमान थे उसी प्रकार आप लोग भी अपने देश जाति और कुटुम्ब की उन्नति कीजिये, देखिये! पूर्व समय में रेल आदि साधनों के न होने से अनेक कष्टों का सामना करके भी आप के पूर्वज अपने कर्तव्य से नहीं हटते थे इसी लिये उन का प्रभाव सर्वत्र फैल रहा था, जिस के उदाहरणरूप नररत्न वस्तुपाल और तेजपाल के समय में दसे और बीसे, ये दो फिरके हो चुके है । __ प्रिय वाचकवृन्द ! क्या यह थोड़ी सी बात है कि उस समय एक नगर से दूसरे नगर को जाने में महीनों का समय लगता था और वही व्यवस्था पत्र के जाने में भी था तो भी वे लोग अपने उद्देश्य को पूरा ही करते थे, इस का कारण यही था कि-वे लोग अपने वचन पर ऐसे दृढ़ थे कि-मुख से कहने के बाद उन की बात पत्थर की लकीर के समान हो जाती थी, अब उस पूर्व दशा को हृदयस्थ कर वर्तमान दशा को सुनिये, देखिये! वर्तमान में-रेल, तार और पोष्ट आफिस आदि सब साधन विद्यमान है कि-जिन के सुभीते से मनुष्य आठ पहर में कहाँ से कहाँ को पहुँच सकता है कुछ घटों में एक दूसरे को समाचार पहुंचा सकता है इत्यादि, परन्तु बड़े अफसोस की बात है कि-इतना सुभीता होने पर भी लोग सभा आदि में एकत्रित हो कर एक दूसरे से सहानुभूति को प्रकट कर अपने जात्युत्साह का परिचय नहीं दे सकते है, देखिये ! आज जैनश्वेताम्बर कान्फ्रेंस को स्थापित हुए छः वर्ष से भी कुछ अधिक समय हो चुका है इतने समय में भी उस के ठहराव का प्रसार होना तो दूर रहा किन्तु हमारे बहुत से जैनी भाइयो ने तो उस सभा का नाम तक नहीं सुना है तथा अनेक लोगो ने उस का नाम और चर्चा तो सुनी है परन्तु उस के उद्देश्य और मर्म से अद्यापि अनभिज्ञ है, देखिये! जैनसम्बधी समस्त समाचारपत्रसम्पादक यही पुकार रहे है कि-कान्फ्रेंस ने केवल लाखों रुपये इकट्ठे किये है, इस के सिवाय और कुछ भी नहीं किया है, इसी प्र. कार से विभिन्न लोगों की इस विषय में विभिन्न सम्मतियाँ है, हमें उन की विभिन्न सम्मतियों में इस समय हस्तक्षेप कर सत्यासत्य का निर्णय नहीं करना है किन्तु हमारा अमीष्ट

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