________________
६८२
जैनसम्प्रदानशिक्षा ||
उभर जाने में सङ्कोच करता था, परन्तु प्रारम्परेखा तो बड़ी प्रबल होती है, बस उसे ने अपना भोर किया और राजकुमार की उमरानों के सहित बुद्धि पट गई, फिर क्या था ये सब क्षीघ्र ही उत्तर विष्ठा में चले गये और वहाँ पहुँच कर संभोगमा सूर्यकुण्ड पर ही स्वड़े हुए, वहाँ इन्हों ने देखा कि छ ऋषीश्वरों ( पाराश्चर मौर गौतम आदि ) ने भचारम्भ कर कुण्ड, मण्डप, ध्वजा और कुछ यादि का स्थापन कर रक्खा है और पे वेदध्वनिसहित मन कर रहे हैं, इस कार्यवाही को देख, वेदध्वनि का भरण कर और मशाला के मण्डप की रचना को देख कर राजकुमार को बड़ा भाम्पर्य हुआ और वह मन में विचारने गा कि देखो ! मुझ को तो यहाँ माने से राजा ने मना कर दिया और यहाँ पर छिपा कर यज्ञारम्भ कराया है, राजा की यह चतुराई मुझे भाव मालूम हुई, यह विचार कर राजकुमार अपने साथ के उमरानों से बोला कि "ब्राह्मणों को पकड़ में और सम्पूर्ण यशसामग्री को छीन कर नष्ट कर डालो, राजकुमार का यह वचन रूपों ही ब्राह्मणों और ऋषियों के कणगोचर हुआ त्यों ही उन्हों ने समझा कि रावास भान परे हैं, बस उन्हों ने लेखी में आकर राजकुमार को न पहिचान कर किन्तु उन्हें राक्षस ही जान कर घोर छाप दे दिया कि - "हे निर्बुद्धियो ! तुम लोग पापाणवत् जड़ हो जाओ" शाप के देते ही महचर उमराब और एक रामपुत्र घोड़ों के सहित पाषाणवत् बुद्धि हो गये अर्थात् उन की 'मने फिरने देखने और बोलने भावि की सब शक्ति मिट गई स्मोर षे मोहनिद्रा में नियम हो गये, इस बास को जब राजा और नगर के लोगों ने सुना सो शीघ्र ही वहाँ भाकर उपस्थित हो गये और उन्हों ने कुमार तथा उमरायों को छाप के कारण पाषाभनत् बुद्धि देखा, बस उन्हें ऐसी दशा में देख कर राजा का अन्तकरण विषय हो गया और उस ने उसी दुख से अपने माणों को सम दि उस समय राम्रा के साथ में रानियों मी भाई थी, बिन में से सोलह रानियाँ तो स्त्री हो गईं और शेष रानियाँ ब्राह्मणों और कापियों के घरणागत हुई, ऐसा होते ही मास पास के रजवाड़े वालों ने उस का राज्य वना किया, तब रामकुमार की भी उन्हीं बा उमरागों की स्त्रियों को साथ लेकर स्वन करती हुई वहाँ आई और ब्राह्मणों तथा भाषियों के चरणों में गिर पड़ी, उन के दुःख को देख कर भाषियों ने शिव मी कामाक्षरी मन देकर उन्हें एक गुफा बदला दी और यह वर दिया कि तुम्हारे पति महादेव पाटी के गर से शुद्धबुद्धि हो जायेंगे, तब तो वे सब सिमाँ वहाँ बैठ कर शिवजी का करण करने लगीं, कुछ काम के पीछे पार्वती जी के सहित विष भी वहाँ आगे, उस समय पार्नसी जी ने महादेव जी से पूछा कि यह क्या म्पवस्था है। तब शिव जी ने उन के पूर्व इतिहास का वर्णन कर उसे पार्वती जी को सुनाया, जब राजा के कुँबर की रानी और बहचर उमरानों की ठकुरानियों को यह माषप्त हुआ कि समसुम पार्वती जी के