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चैनसम्प्रदायचिया ॥
इसी रीति से इस के विषय में बहुत सी बातें प्रचलित है बिन का वर्णन अनावश्यक समझ कर नहीं करते हैं, सैर-देवालय के बनने का कारण चाहे कोई ही क्यों न हो किन्तु मसल में सारांश वो यही है कि इस देनाकम्य के मनवाने में अनुपमा और कीमबसी की धर्मबुद्धि ही मुख्य कारणभूत समझनी चाहिये, क्योंकि निस्सीम धर्मबुद्धि और निष्काम भक्ति के विना ऐसे महत् कार्य का कराना षति कठिन है, वो ! भाबू सरीले दुर्गम मार्ग पर सीन इमार फुट ऊँची संगमरमर पत्थर की ऐसी मनोहर इमा रव का उठवाना क्या असामान्म मौदार्य का दर्शक नहीं है । सब ही जानते हैं कि बालू के पहाड़ में सगमरमर पत्थर की खान नहीं है किन्तु मन्दिर में लगा हुआ सग ही पत्थर आबू के नीचे से करीब पच्चीस माइक की दूरी से अरीवा की खान में से बना गया था ( मह पत्थर भम्बा भवानी के गैंगर के समीप वस्तर प्रान्त में मिलता है) परन्तु कैसे लाया गया, कौन से मार्ग से लाया गया, खाने के समय क्या २ परिश्रम उठाना पड़ा और किसने ब्रम्प का वर्ष हुआ, इस की सर्कना करना यति कठिन ही नहीं किन्तु भवम्ययत् प्रतीत होती है, देखो ! वर्तमान में तो भाबू पर गाड़ी मावि के ाने के एक मस्त मार्ग बना दिया गया है परन्तु पहिले ( देवालय के बनने के समय ) सो आबू पर चढ़ने का मार्ग अति दुर्गम था अर्थात् पूर्व समय में मार्ग में गहन झाड़ी भी तथा अघोरी जैसी क्रूर मावि का सधार भावि था, मला सोचने की बात है कि इन सब कठिनाइयों के उपस्थित होने के समय में इस देवालय की स्थापन्य मिन पुरुषों ने करवाई थी उन में धर्म के नियम और उस में स्थिर भक्ति के होने में
सन्देह ही क्या है ।
वस्तुपास और से पास ने इस देवालय के अतिरिक्त मी देवासम्म, प्रतिमा, शिवाय उपाश्रय ( उपासरे ), विद्याशाखा, स्तूप, मस्जिद, कुमा, साबाब, नागड़ी, सदामत और पुस्तकालय की स्थापना आदि अनेक शुभ कार्य किये थे, जिन का वर्णन हम कहाँ तक करें बुद्धिमान् पुरुष ऊपर के ही कुछ वर्णन से उन की धर्ममुद्धि और सक्ष्मीपात्रता अनुमान कर सकते हैं ।
रखने से यह बात भी
इन (वस्तुपाल और तेजपाल ) को उदाहरणरूप में भागे स्पष्ट मासूम हो सकती है कि पूर्व काल में इस कार्यावर्त देश में बड़े २ परोपकारी धर्मात्मा तथा कुबेर के समान भनान गृहस्थ मन हो चुके हैं, भाषा ! ऐसे ही पुरुष रबों से यह रसगर्भा वसुन्धरा छोमायमान होती है और ऐसे ही नररयों की सत्कीर्ति और नाम सदा कामम रहता है, देखो ! शुभ कार्यों के करने माझे मे वस्तुपास और क्षेत्र पास इस संसार से पड़े जा चुके हैं, उन के गृहस्थान आदि के भी कोई चिह्न इस समय मैने पर भी नहीं मिलते हैं, परन्तु उक्त महोदयों के नामाशिवाय से इस भारतभूमि