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मैनसम्मवायश्चिक्षा ॥ कि-मिस से हमारों भादमी मर चुके थे मोर मर रहे थे, रोग के मफोप को देसर वों का राजा बहुत ही मयानर हो गया और अपने गुरु ग्राममों सषा भाषियों को मुगकर सर से उक्त उपद्रव की शान्ति का उपाय पूछा, रापा के पूछने पर उक पर्य गुरुमों ने कहा कि-" राबन् ! नरमेप पत्र को करो, उसके करने से शान्ति होगी" उन के पपन को सुन कर रामा ने शीघ्र ही नरमेष यज्ञ की सैवारी पाई और गध में होमने के म्पेि एक मनुष्य के छाने की माझा मी, संयोगवश्च राबा के नौकर मनुष कोदते हुए श्मशान में पहुँने, उस समय पहा एक दिगम्बर मुनि ध्यान मगाये हुए सड़े थे, बस उन को देसते ही रामा के मौकर उन्हें पकाकर यहचाम में है गय, मन की विधि कराने प्राों ने उस मुनि को मान परा के समापन पहिरा कर राना साब से विफ करा पर हाथ में सहास वे कर समाबेद का मा पा कर बनकण में स्वाहा र विमा, परन्तु ऐसा करने पर भी उपद्रव शान्त न हुषा किन्तु उस दिन स उन्टा असल्मातगुणा केश भोर,उपद्रव होने म्गा सपा उपक रोगों के सिवाय भमिवार, भनाइट मोर प्रवण हगा (भाषी) मादि भनेक करों से प्रना को अत्यन्त पार होमे गगी भोर मावन अत्यन्त प्याकुल होकर राजा के पास बा २ पर भपना र कर सुनाने लगे, राधा मी उस समय पिन्ता के मारे गिर हो कर मूछोगत (पास) हो गया, मूर्ण होते ही राजा को सम भाया और सम में उस ने पूर्योक (विमम्मर मत के) मुनि को देसा, अब मूळ दर हुई और राजा के नेप्र सुरु गये तब रागा पुन उपयों की शान्ति का विचार परमे मा भौर मोड़ी देर के पीछे भपने ममीर उमरामा को साप कर यह नगर बार निका, बाहर बार उस ने उपान में ५०० दिगम्बर मुनिरागों को मानाहर देसा, उने देखते ही रामादय में विस्मय उस हुमा और वह प्लीम ही उनके परणों में गिरा मोर स्खन करता हुआ मोठा लि महाराम! भाप रुपा कर मेरे देश में शान्ति करो" राधा के इस विनीत ( विनम्मुरु चपन को सुन कर जिमसेमापार्य मोसे कि- रामन् ! त् वमाधर्म की वृदिर' राजा मोहा कि महारान! मेरे देश में मा उपवन क्यों हो रहा।" तर विगम्परा पार्य ने कहा कि-" रामन् ! सू पौर सेरी प्रजा मिष्माल से मन्ये होकर गीचा करने सगे तथा मांससेवन मौर मदिरापान कर अनेक पापापरण किये गये, उन
परम सेरे देश भर में महामारी फैशी की मौर उसके विश्वेप पाने का रेटमा हि-तूने ठान्ति के महाने से नरमेप पत्र में मुनि होम कर सर्व प्रकारे का मम दिया, पस इसी परम ये सब दूसरे भी मनेक उपद्रप फेस रहे है, मुझे यह भी स्मरण रोकि-पर्वमान में पो जीवहिंसा से भनेक उपाय हो रहे हैं यह तो एक सामान बात , इसकी विशेषता वो तुझे मवान्तर (परसो) में विदित होगी भर्मात् भवान्तर -