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पश्चम अध्याय ।। -
६७३ उक्त देवालय के वनवाने में द्रव्य के व्यय के विषय में एक ऐसी दन्तकथा है किशिल्पकार अपने हथियार ( औज़ार ) से जितने पत्थर कोरणी को खोद कर रोज़ निकालते थे उन्हीं ( पत्थरों ) के बराबर तौल कर उन को रोज़ मजूरी के रुपये दिये जाते थे, यह क्रम बरावर देवालय के वन चुकने तक होता रहा था।
दूसरी एक कथा यह भी है कि-दुप्काल ( दुर्भिक्ष वा अकाल ) के कारण आबू पर बहुत से मजदूर लोग इकट्ठे हो गये थे, बस उन्हीं को सहायता पहुंचाने के लिये यह देवालय वनवाया गया था। और ब्राह्मण आदि को कर नहीं देना पडता है, यहाँ की और यहाँ के अधिकार में आये हुए ऊरिया आदि ग्रामों की उत्पत्ति की सर्व व्यवस्था उक्त अधिकारी ही करता है, इस के सिवाय-यहाँ पर बहुत से सर्कारी नौकरों, व्यापारियों और दूसरे भी कुछ रहवासियों ( रईसो) की वस्ती है, यहाँ का बाजार भी नामी है, वत्तेमान में राजपूताना आदि के एजेंट गवर्नर जनरल के निवास का यह मुख्य स्थान है इस लिये यहाँ पर राजपूताना के राजी महाराजो ने भी अपने २ बॅगले बनवा लिये हैं और वहाँ वे लोग प्राय उष्ण ऋतु में हवा खाने के लिये जाकर ठहरते हैं, इस के अतिरिक्त उन (राजी महाराजों) के दर्वारी वकील लोग वहाँ रहते हैं, अर्वाचीन सुधार के अनुकूल सर्व साधन राज्य की ओर से प्रजा के ऐश आराम के लिये वहाँ उपस्थित किये गये हैं जैसे-म्यूनीसिपालिटी, प्रशस्त मार्ग और रोशनी का सुप्रवन्ध आदि, यूरोपियन लोगों का भोजनालय (होटल), पोष्ट आफिस और सरत का मैदान, इत्यादि इमारतें इस स्थल की शोभारूप हैं।
आबू पर जाने की सुगमता-खरैडी नामक स्टेशन पर उतरने के बाद उस के पास में ही साशदावादनिवासी श्रीमान् श्रीबुध सिंह जी रायबहादुर दुधेडिया के वनवाये हुए जैन मन्दिर और घमशाला है, इस लिये यदि आवश्यकता हो तो धर्मशाला में ठहर जाना चाहिये नहीं तो सवारी कर आवू पर चले जाना चाहिये, आबू पर डाक के पहुंचाने के लिये और वहाँ पहुँचाने को सवारी का प्रबंध करने के लिये एक भाडेदार रहता है उस के पास तोंगे आदि भाडे पर मिल सकते हैं, आवू पर जाने का मार्ग उत्तम है तथा उस की लम्बाई सत्रह माइल की है, तोंगे मे तीन मनुष्य वैठ सकते हैं और प्रति मनुष्य ३) रुपये भाडा लगता है अर्थात् पूरे तोंगे का किराया १२) रुपये लगते हैं, अन्य सवारी की अपेक्षा तोंगे * जाने से आराम भी रहता है, आवू पर पहुँचने मे ढाई तीन घण्टे लगते हैं, वहाँ भाडेदार (ठेके वाले) का आफिस है और घोडा गाडी का तवेला भी है, आबू पर सव से उत्तम और प्रेक्षणीय (देखने के योग्य) पदार्थ जैन देवालय है, वह भाडेदार के स्थान से डेढ माइल की दूरी पर है, वहाँ तक जाने के लिये बैल की और घोडे की गाडी मिलती है, देलवाडे में देवालय के बाहर यात्रियों के उतरने के लिये स्थान वने हुए हैं, यहाँ पर वनिये की एक दूकान भी है जिस में आटा दाल आदि सब सामान मूल्य से मिल सकता है, देलवाडा से थोड़ी दूर परमार जाति के गरीब लोग रहते हैं जो कि मजदूरी आदि काम काज करते हे और दही दूध आदि भी वेचते हैं, देवालय के पास एक बावडी है उस का पानी अच्छा है यहाँ पर भी एक भाडेदार घोडों को रखता है इस लिये कहीं जाने के लिये घोड़ा भाडे पर मिल सकता है, इस से अचलेश्वर, गोमुख, नखी तालाव और पर्वत के प्रेक्षणीय दूसरे स्थानों पर जाने के लिये तथा सैर करने को जाने के लिये बहुत आराम है, उष्ण ऋतु में आवू पर बड़ी वहार रहती है इसी लिये वह लोग प्राय उणा ऋतु को वहीं व्यतीत करते हैं ॥